तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने अगले महीने यानी नए साल के पहले महीने से कू्रड यानी कच्चे तेल का उत्पादन घटाने का फैसला किया है।
इससे तीन-चार महीने में पेट्रोल और डीजल के दाम 5 से 8 प्रतिशत तक बढ़ जाएंगे। क्रिसिल ने एक रिपोर्ट में यह बात कही है। ओपेक के मुताबिक अगले माह एक जनवरी से प्रतिदिन 12 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन कम किया जाएगा।
यह कटौती सदस्य देशों के कुल तेल उत्पादन का करीब तीन फीसदी है। एक जनवरी से ओपेक देशों का उत्पादन 32.5 करोड़ बैरल रोजाना ही रह जाएगा। उत्पादन कटौती के मुद्दे पर इन देशों के बीच दो साल से विवाद चल रहा था। सउदी अरब कटौती के लिए तैयार नहीं था।
नतीजन, पिछले दो सालों में तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई। ओपेक अधिकारियों के मुताबिक कुछ महत्वपूर्ण गैर ओपेक अधिकारियों के मुताबिक कुछ महत्वपूर्ण गैर ओपेक कच्चा तेल उत्पादक देश भी अपने उत्पादन को कम करने की योजना बना रहे हैं। बताया गया है कि रूस अपने तेल उत्पादन में भारी कटौती के लिए तैयार हो गया है। 2014 के मध्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चों तेल के भाव 110 डॉलर प्रति बैरल था।
मगर बाद में गिरते-गिरते वह 35 डॉलर प्रति बैरल तक आ गया। ओपेक को अनुमान है कि उसके ताजा फैसले के बाद ये कीमतें 60 डॉलर के आसपास पहुंच जाएगी। यानी यह तो इन देशों का भी मानना है कि ऊंची कीमत के पुराने दिन अब नहीं लौटेंगे। मगर अनेक जानकारों को शक है कि तेल के दाम ओपेक की अपेक्षा के स्तर तक पहुंचेंगे। गुजरे वर्षांे में तेल उत्पादन की दुनिया बदल चुकी है।
ओपेक आज विश्व की मांग के सिर्फ 40 फीसदी हिस्से की सप्लाई करता है। अमेरिका में पिछले एक दशक में नए तेल भंडार मिले हैं। इसके अलावा शेल तेल एवं गैस के रूप में ऊर्जा का नया स्त्रोत सामने आया है। रूस एक बड़े उत्पादक के रूप में उभरा है।
इन सब कारणों से तेल का बाजार ओपेक के हाथ से फिसलने लगा है। तो दो साल पहले सउदी अरब ने तेल को इतना सस्ता कर देने की चाल चली, जिससे नए भंडारों या शेल गैस की खोज या खुदाई अलाभकारी हो जाए। इसका असर हुआ। लेकिन यह प्रभाव भी हुआ कि ओपेक देशों की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई। इन देशों में सउदी अरब भी है। तो अब संकट से उबरने के लिए उत्पादन घटाने की चाल चली गई है।
लेकिन इसके सीमित रूप में ही सफल होने की संभावना है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर भारत में मौजूद तेल के भंडारों का दोहन कर उनका उत्पादन बढ़ाया जाना चाहिए। राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में तेल के अकूत भंडार है। बाड़मेर में रिफाइनरी लगाने की वर्षांे से बातचीत चल रही है किन्तु उसके क्रियान्वयन में हो रही देरी हो रही है।
कच्चे तेल की मांग की आपूर्ति के लिए इसका कार्य शुरू किया जाना चाहिए। मुश्किल यह है कि देश में वाहनों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है जिसके फलस्वरूप पेट्रोल, डीजल की मांग बढ़ती जा रही है। देश में कच्चे तेल का उत्पादन पर्याप्त न होने के कारण हमें आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
मांग की 70 फीसदी आपूर्ति आयात पर निर्भर है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और केरोसिन की कीमतों में उतार-चढ़ाव का उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा असर पड़ता है। डीजल के मूल्य में सिर्फ एक रुपए प्रति लीटर की वृद्धि से थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) में 0.10 प्रतिशत का इजाफा होता है।
पेट्रोल और डीजल के दाम बाजार के आधार पर तक किए जाते हैं। पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) के मुताबिक पेट्रोल की कीमत में एक रुपए प्रति लीटर का इजाफा होता है तो थोक मूल्य सूचकांक में 0.02 फीसदी की वृद्धि होती है। मुद्रास्फीति का सबसे ज्यादा फर्क डीजल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का पड़ता है। डीजल के मूल्य में एक रुपए की बढ़ोतरी से थोक मूल्य सूचकांक 0.10 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
खुदरा मूल्य सूचकांक पर इसका असर ज्यादा होता है। सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत दिए जाने वाले केरोसिन को खत्म करने की कोशिश कर रही है ताकि देश को केरोसिन मुक्त बनाया जा सके। लेकिन केरोसिन के दाम में एक रुपए की वृद्धि थोक मूल्य सूचकांक में 0.05 प्रतिशत का इजाफा दर्ज करती है। रसोई गैस (एलपीजी) की कीमत भी मुद्रास्फीति के लिए काफी अहम होती है।
रसोई गैस सिलेंडर की कीमत में 10 रुपए प्रति सिलेंडर की कीमत में वृद्धि से 0.02 फीसदी मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है। आर्थिक जानकारों का कहना है कि पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और रसोई गैस मूल्य सूचकांक पर थोक मूल्य सूचकांक के मुकाबले दो गुना ज्यादा असर पड़ता है।