वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। इसी कारण अक्षय तृतीया के दिन पूरे भारत में परशुराम जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस साल 28 अप्रैल यानी शुक्रवार को परशुराम जयंती मनाई जाएगी, दक्षिण भारत में परशुराम जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है। आइए जानते हैं भगवान परशुराम से जुड़ी कुछ रौचक जानकारियां....
अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त
ब्राह्मण होते हुए भी क्यों था परशुराम का क्षत्रियों सा स्वभाव :-
एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए।
कैसे पड़ा परशुराम नाम :-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सीता स्वयंवर के समय भगवान परशुराम अपना धनुष-बाण श्री राम को समर्पित कर सन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। वे अपने साथ हमेशा एक फरसा रखते थे और इसी कारण उनका नाम परशुराम पड़ा।
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इस दिन इस विधि से होती है पूजा :-
परशुराम जयंती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है।
सौभाग्यवती स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं।
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