नई दिल्ली। रविवार को होने वाली वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) परिषद की अनौपचारिक बैठक को लेकर चिंताएं बढऩे लगी हैं। चिंता इस बात को लेकर है कि क्या वर्तमान माहौल में यह सर्वसम्मति आधारित फैसला ले सकती है? खासकर नोटबंदी के मुद्दे के बाद उग्र विपक्ष का अब भी रुख स्पष्ट नहीं है। इसे पहले की जीएसटी परिषद की बैठक में दोहरे नियंत्रण या केंद्र और राज्य में से किसी कर का निर्धारण कौन करेगा इस बारे में कोई सहमति नहीं बन पाने के बाद 20 नवंबर को एक राजनीतिक प्रयास के जरिए आम सहमति बनाने के लिए 20 नवंबर को अनौपचारिक बैठक करने को कहा था। रविवार को होने वाली इस बैठक में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली और राज्यों के वित्त मंत्री व अन्य अधिकारियों के बगैर भाग लेंगे।
योजना के बाद इसके बाद आम सहमति बनाने के लिए 24-25 नवंबर को इस मुद्दे पर बैठक होगी जो उम्मीद की जा रही है कि आम सहमति बनाने के लिए यह अंतिम बैठक होगी। लेकिन 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बंद किए जाने से उत्पन्न स्थिति को लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है। समस्या अब भी गंभीर है, क्योंकि राज्यों में वित्तमंत्री अलग-अलग राजनीतिक दलों के हैं और उनके आम सहमति पर आधारित किसी फैसले पर पहुंचने की उम्मीद नहीं है। जेटली ने कहा है कि काम करने के लिहाज से जीएसटी तय करने के लिए दो प्राधिकारी नहीं हो सकते। इस स्थिति से बचना होगा। इसके लिए एक स्पष्ट दिशा निर्देश होना चाहिए कि किस चीज का कर निर्धारण कौन करेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि परिषद की बैठक में राजनीतिक नेतृत्व जो परिषद में विचार-विमर्श करेगा, वह बगैर किसी सहयोगी या अधिकारी के होगा। 24-25 नवंबर की जीएसटी की बैठक में जीएसटी के चार विधेयकों के मसौदों पर चर्चा होनी है। इसमें केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी, एकीकृत जीएसटी और राज्यों को होने वाले राजस्व घाटे से जुड़े व्यापक मुद्दे। परिषद से स्वीकृति के बाद इन्हें संसद और राज्य की विधानसभाओं से पारित कराना होगा। अभी तक 1 अप्रैल 2017 से देश में जीएसटी लागू करने का सरकार ने लक्ष्य रखा है। जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है जो अधिकांश केंद्र और राज्य के करों जैसे मूल्य संवद्धित कर, सेवा कर, केंद्रीय बिक्री कर, उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त सीमा शुल्क और विशेष अतिरिक्त सीमा शुल्क की जगह पर लगेगा।