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सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर दोनों पक्ष समझौते के लिए तैयार हों, तो अदालतों को दंडात्मक के बजाय Compensatory (क्षतिपूर्ति) उपायों को प्राथमिकता देनी चाहिए। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया को सरल बनाने और चेक बाउंस के लंबित मामलों के तेजी से निपटारे में मदद करेगा।
चेक बाउंस को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख
चेक बाउंस को भारतीय कानून के तहत एक गंभीर अपराध माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक केस पर सुनवाई के दौरान कहा कि समझौता योग्य मामलों में तेजी लाने की जरूरत है। अगर दोनों पक्ष सहमत होते हैं, तो दंडात्मक कार्रवाई के बजाय विवाद को सुलझाने पर जोर दिया जाना चाहिए।
हाई कोर्ट का फैसला पलटा गया
साल 2006 के एक मामले में आरोपी पी. कुमार सामी ने ₹5.25 लाख का चेक जारी किया था, जो अपर्याप्त राशि के कारण बाउंस हो गया। निचली अदालत और हाई कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया और सजा दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दोनों फैसलों को रद्द कर दिया।
समझौता और सुप्रीम कोर्ट का आदेश
इस मामले में, दोनों पक्षों ने समझौता किया और शिकायतकर्ता को पूरी राशि का भुगतान किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ध्यान में रखते हुए कहा कि चेक बाउंस के मामलों का उद्देश्य आर्थिक अनुशासन बनाए रखना है, न कि केवल सजा देना। अदालत ने सुझाव दिया कि ऐसे मामलों में समझौता प्रक्रिया को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।