जयपुर। कहने को मैया के चमत्कार को लेकर वहां भक्तो का साल भर मेले का सा माहौल रहता है, मगर नवरात्रा में नौ दिनांे तक वहां इस कदर भीड़ रहती है कि वहां मंदिर प्रांगण में लोगोंे को पांव रखने तक की जगह नहीं मिलती है। स्थापना के पहले दिन भक्तोंं की भारी भीड़ के चलते वहां दर्शणार्थियोंं क ी सुविधा के लिए कई दर्जन बसें चलाई जा रही है। मंदिर प्रांगण मेंं सौ से अधिक दुकानें भी लगी है, जहां पर माता करणी माता का फोटो युक्त पैंडिल और उनकी चांदी से बनी खूबसूरत मुर्तियां, लोगों को बहुत भा रही है। पूजा- पाठ से संबंधित सामाग्रियों के अलावा माता का प्रसाद जो कि ड्राई फू्रट से बना है, इसकी बिक्री भी काफी हो रही है। बच्चों के खिलौने और झूले वाले भी काफी संख्या में वहां पहुंचे हुए हैं।
मंदिर में सेवा- पूजन करने वाले चारण पुजारियों का कहना है कि भारत में सैंकड़ों चमत्कारिक और रहस्यमय मंदिर है। उनमें कुछ मंदिरोंं का रहस्य अब तक भी नहीं सुलझाया जा सका है। माता को लेकर भक्तजनों के बीच यह जिज्ञासा होती है कि मां करणी का जन्म 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम रिघुबाई था। इनका विवाह साठिका गांव के कि पोजी चारण से हुआ था। वैराग्य होने के बाद माता सांसारिक जीवन को छोड़ कर भक्ति और लोगों की सेवा में लग गई थी। यह भी कहते हैं कि सांसारिक जीवन छोड़ने के पूर्व उन्होने अपने पति का विवाह अपनी छोटी बहन गुलाब से करवा दिया था। माता क रीब 151 सालों जीवित रही। माता ने जिस स्थान पर अपनी देह का त्याग किया, वहीं आज करणी माता का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। इसी भव्य देखने लायक है।
यह मंदिर राजस्थान से बीकानेर से तीस किलोमीटर की दूरी पर देशनोक कस्बे में स्थित है। यहां जाने पर मंदिर के भीतर चूहे ही चूहे नजर आएंगे। कहते हैं कि वहां बीस हजार से अधिक चूहे हैं। इन चूहों अर्थात काबा में कुछ चूहे सफेद रंग के है, जिन्हे चमत्कारिक और शुभ माना जाता है। इनके दर्शन के लोग घंटों बैठ कर इंतजार करते हैं।
इस मंदिर का रहस्य यह है कि करणी माता के बहन का पुत्र लक्ष्मण कपिल सरोवर में डूब कर मर गया था। इस पर माता ने यमराज से पुत्र को जीवित करने की प्रार्थना की । ऐसे में यमराज ने विवश होकर उसे चूहें के रूप में पुनर्जिवित कर दिया। बताते हैं कि तभी से यहां पर हजारों चूहे घूमते दिखाई देते हैं। हालांकि चूहोें को लेकर एक मत यह भी प्रचलित है कि एक बार बीस हजार सैनिकों की एक टुकड़ी देशनोक पर हमला करने के लिए आई थी। माता को जब इसका पता चला तो देशनोक की रक्षार्थ इन सभी को चूहे बना दिया। यहां चूहोें को काबा कहा जाता है। इन्हें बाकायदा नित्य भोजन करवाया जाता है। यहां इस कदर चूहे हैं कि आपको पांव घसीट कर चलना होता है। यदि एक भी चूहा आपके पांव के नीचे आकर मर गया तो इसे अपशकुन माना जाता है और उसे सोने का चूहा बना कर रखना होता है।
यह जानकार कि भक्त को आश्चर्य होता है कि यहां चूहोें का झूंठा भोजन बेहद पवित्र माना जाता है। भोजन को वहां प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है। इस प्रसाद को खाने के बाद अब तक किसी के बीमार होने की खबर नहीं मिली है। हालांकि वहां शुद्ध प्रसादी ही मिलती है।
माता के मंदिर की विशेस्तए यह भी है कि सुबह पांच बजे मंदिर में वाली मंगला की आरती और शाम सात बजे संध्या की आरती के समय अपने बिलों से बाहर निकले हैं। वहां इन चूहों के कारण दुर्गंध नहीं आती है। कोई बीमारी भी नहीं होती है।