जयपुर। यह सत्य कथा अंध विश्वास से जुड़ी नहीं थी,मगर कुछ सवाल जरूर पैदा कर रही थी, जिसकी गुत्थी सुलझाने की मुझ में हिम्मत नहीं हो रही है। मामला दो तीन दिन पुराना है। जनता कॉलोनी अक्सर आना जाना रहता है। उस दिन भी यही रूटीन था। रात के समय वहां कोहरा छा जाया करता है। रोड लाइट खराब होने पर, स्क्वटी की लाइट भी काम नहीं कर रही थी। कुछ वाहन जरूर आ जा रहे थे। तभी, ना जाने क्या हुवा। मेरी मोपेट एका एक, थोड़ा झटका खा कर रुक गई। कोई खास बात नहीं लगी।
सोचा, ठंड ज्यादा है, गाड़ी घोड़ा है, हो जाते हैं खराब। सेल्फ काम नहीं कर रहा था। स्टैंड लगा कर किक लगाने लगा। पसीना पसीना हो गया। तभी दो युवक रुके और मदद की कौशिश करने लगे। काम नहीं बना। हार मान कर रवाना हो गए। थकान हो गई थी। निकट ही, पत्थर की बनी बैंच पर जाकर आराम करने लगा था। तभी मेरी नजर वहां कुछ दूरी पर किसी की चिता जल रही थी। चिता के पास ही कोई पंद्रह बीस लोग,वहां बैठे कुछ खा रहे थे। अजीब सा लगा। आम तौर पर लोग शमशान में कुछ खाते पीते नहीं है। सोचा कोई सिर फिरे होंगे। मुझे क्यूरोसिटी होने लगी। दबे पांव से चिता की ओर जाने लगा।
मैं कुछ दूर चल कर उन लोगों के नजदीक जा कर खड़ा हो गया। तभी इनमें किसी एक को शायद अहसास हो गया था कि कोई उनके पीछे खड़ा है। आग की रोशनी में उसका चेहरा धुंधल लासा दिखाई दिया। अजीब सा लग रहा था। एक आंख खराब थी। फेस जला हुआ था। पहला मौका था। मुझे डर सा लगा। पुराने लोगों की बातें याद आने लगी। भूत प्रेत के किस्से। मैने अपने आप को संभाला। दिल की धड़ कने तेज थी। नाक से लंबी लंबी सांस लेकर इसे काबू में लेने की कोशिश करने लगा। अजीब बात यह थी की उसके दूसरे साथियों पर कोई रिएक्शन नहीं हूवा। बस कुछ खाए जा रहे थे। मैं डर गया था।
सच में डर गया था। अपनी गाड़ी पर लौट कर, उसे धक्के मार कर आदर्श नगर की ओर रवाना हो गया। किसी तरह घर पहुंचा। रात का भोजन नहीं करके सोने की कोशिश करने लगा। सुबह उठा तो मेरा बदन जल रहा था। सुलग रहा था। घर में बुखार की टेबलेट रखी हुई थी। मगर कोई असर नहीं हुआ। याने वह भी बे असर। बात चाहे जो हो। मैने अपना मार्ग ही बदल दिया । मगर एक सवाल परेशान कर रहा था। देर रात के समय कौन थे वे अजनबी लोग। फिर क्या खा रहे थे। वह भी चिता को घेर कर। यह सवाल आज भी सस्पेंस में है। जो मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था।