जयपुर। वह सर्द रात,गवर्नमेंट हॉस्टल के पीछे। बैठी थी एक दर्द भरी जिंदगी। पहनने को कत्थई रंग का घागरा। जगह से फटा जुवा था। उलझे बिखरे बाल। फुटपाथ के छोर पर बैठी हुई थी वह। सर्द से बचाव के लिए अधजली लकड़ियां, अपने इस्तित्व को बचने को हवा के खोलो के बीच मानों तडफती मचल रही थी। रोशनी नाम की इस किशोरी के साथ ही दो बुजुर्ग महिलाएं। आते जाते लोगों पर तंज कसकर,तेज स्वर में खी खी हंसने लगती थी।फिर मर्दों को क्या चाहिए। कहते है ना हंसी और फंसी। शराब में झूमते। अलाव तपने के बहाने,गंदी भद्दी मजाक करते हुवे लोग। मजनुओं की संख्यां घटती बढ़ती रहती थी। किशोरी की बोलचाल का तरीका मेवाड़ कासा था।
रोशनी से मुलाकात यही पर हुई थी। वह बोली विरासत में मुझे गरीबी अभागिन की जिंदगी मिली। किसे दोष देती। उस मां को,जिसने शायद ही कभी पेट भर रोटी मिली होगी। रोशनी जब छह सात साल की थी अपनी फक्कड़ शहेलियों के साथ खेला करती थी। रोटी खाई होगी। अमूमन होता यही था कि कचरा बिनते जो भी सड़ा बूसा मिलता, भी उसी से पेट भर लिया करता था ।
इन्ही दिनों एक फुटपाथी वहां रोशनी की मां के पास आया। गुलाबी रंग का कड़क दार पजामा और इसी रंग का सलवटे दार कमीज और बिना दांत वाला पुलपिला मुंह । जर्दे का पीक होटओ से बाहर निकलता हुवा। बेहद बदबू दार। काला कलूटा।
चपटी नाक। उम्र होगी सत्तर साल के पार। रोशनी का हाथ मांग रहा था। दिल करता था, गधे पर बिठा कर जयपुर की सड़कों पर घुमाया जाय। मां को पसंद नहीं था। मगर मजबूर थी। अपनी कसम खिला कर रोशनी को तैयार कर लिया।शादी की तैयारियां होने लगी। शहेलियो के बीच तमासा बन गया। पहले रोशनी को बुरा लगता था।मगर फिर वह भी मजाक उड़ाने लगी। बंदर ब्रांड डोकरा ,फिर अपने आप से समझोता कर लिया । कुछ दिनों के बाद रोशनी की शादी हो गई। ससुराल में कुछ दिन सब ठीक ठाक रहा। फिर डोकरा अपनी औकात पर आगया। दिन भर जाने कहा रोता फिरता था।
शाम को दारू पीकर हंगामा करने लगा। मार पीटने लगा था। बात यहीं तक सीमित नहीं रही। फिर उसके साथ कोई ना कोई भड़वा आने लगा। रोशनी ने विरोध किया तो उसके साथ मार पीटने लगा। भूखा रखा गया। पटरी से उतरी रोशनी इन सब की आदि हो गई। दिन छिपते ही श्रंगार शुरू कर देती थी। रात में जो कुछ होता था। किसी को बताने लायक नहीं था। इसी बीच एक दिन मां ने उसे बुलवा भेजा। सोचने लगी, कैसे जा पाएगी। इन भडवो का क्या भरोसा ।दारू पीकर मायके आगए तो। बदनाम हो जाऊंगी। फिर हिम्मत की।अपने आदमी से पूछा। गनीमत थी वह तैयार हो होगया। मैं खुश थी।
अपना हैवी मेकप पानी से धोडाला। लाइट मेकप में उसकी खूब सुरती और ज्यादा निखर गई। मां ने देखा तो बड़ी खुश हुई। कहने लगी,लगता है जवाई जी,प्यार करते होगे। रोशनी की आंखे भर आई। एक नहीं एक दर्जन दामाद है तेरे । सारे के सारे इक्कीस है। रोशनी चुप थी। क्या करती। क्या कहती। सात दिनों तक मां के पास रही। फिर एक दिन जवाई डोकरआ मारा। हर दिन नया ग्राहक आता था। शराब में गिरता पड़ता, कई बार तो उल्टियां करने लगता था। अब आदत सी हो गई थी। क्या करती। कोई रास्ता भी तो नहीं था। औरत थी। कहने को आधी दुनिया थी। मगर उसके साथ जो कुछ हुवा, ना जाने कितनी नारियों को भुगतना होता होगा।