Jaipur : घरवाली का चेहरा देखा तो पति घर छोड़ कर भगा

Samachar Jagat | Monday, 30 Jan 2023 04:31:34 PM
Jaipur : Seeing the face of the housewife, the husband left the house and ran away.

जयपुर। डायन होती भी है कि नहीं,अब यह मान्यता प्रतिबंधित है। यदि किसी महिला पर इसका आरोप लगाने का कोई प्रयास भी करता है,इसे अपराध माना जाता है। ऐसे में सजा भी हो सकती है। मगर अफसोस इस बात का है की आज भी ऐसे मामले याद कदा देखने को मिल जाते है। जुईयह मामला भीलवाड़ा का है, जहां एक महिला को लोगों ने डायन बता कर उसे इस कदर मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी गई की उसे यहां के सरकारी हॉस्पिटल की सघन उपचार इकाई में भर्ती करवाना पड़ा। बहुत लंबे उपचार के बाद उसकी जान बच पाई।

सोशल एक्टिविस्ट तारा आहुवालिया ने  इस केश की काफी स्टडी की है। ताजा मामले की रिपोर्ट वाकई चौकाने वाली है। घटना के अनुसार    आधे चांद की काली रात थी। तभी किसी ने घर के बाहरी दरवाजे की कुंडी खडखड़ाई। अजीब बात थी। भला इतनी रात। वह बड़बड़ाई। फिर लूगड़ी संभाली। पांव में टूटी जूती फंसाकर गेट की ओर बढ़ी। दरवाजा खुला तो कई सारे लोग दनादन करते घर के आंगन में आ  घुसे। वे कोई अजनबी नहीं थे। गांव के छोरे ही थे। कोई मौसी कहता था तो कोई काकी। चाहे जब रसोई में घुस आते थे और मैं बावली उन्हे प्यार से कलेवा करवाया करती।

मगर आज उनका दूसरा ही रूप दिखाई दिया। मुझे गालियां देने लगे थे। फिर बाल पकड़ कर गांव के बीच,तेजा जी के चबूतरे पर घसीट कर ले आए। फिर पेड़ पर बांध डाला। पास खड़ा ओझा घूरने लगा। मानों चबा जायेगा। मगर क्यों। मेरा गुनाह क्या था। पर सुनता कौन । ढोल मझिरे की तेज आवाज में मेरी चीख दब कर रह गई। जिसे मोका मिलता,मुझ पर टूट पड़ता था। गलियों पर गालियां। ओझा पास के गांव का था। डोकरा सा। साठ साल की उम्र होगी। पर दांत टूट चुके थे। आंखों में लुगाइयों की तरह काजल लगाया हुआ। एक हाथ में कांसी का कटोरा लिए। जाने क्यों फूल पत्तीया मुझ पर डाल रहा था।

साथ ही, ना जाने क्या बडबडाता था। कुछ ही देर में मेरे सिर के बाल काट दिए थे। अब मुझे शुद्ध किया जा रहा था। बारह साल में ना जाने कितनी बार डायन शब्द सुना कि मेरा नाम ही मुझे याद नहीं रहा। बदला हुवा नाम रतनी कह कर पुकारा जाने लगा था। उसके गांव की पहचान यह बन चुकी थी कि उनमें कोई भी पढ़ा लिखा नहीं था। सारे के सारे टोल थे। मैं शादीसुदा थी। एक रोज सौ कर उठी तो पति मुझे छोड़ कर भाग गया। मैं रोई। गांव वालों से मदद मांगी तो कहने लगे,अच्छा हुवा जो घर से भाग गया।  वरना तुझ डायन के साथ रहता तो मर जाता। मेरा ब्याव कम उम्र में हो गया था। बे मेल का था।

मंडप से उठी तो देखा की बिंद राजा के सारे बाल सफेद थे। बहुत दिनों तक उसे काका कह कर पुकारा करती थी। महावारी आई तब मेरा गोना हुवा था। ससुराल में पुरानी हुई तो पड़ोस की बहुओं ने बताया की वह तीसरी  थी। मेरा काम  रोटी पकाने का था। फिर बिंद की सेवा  भीकरनी होती थी फिर मेरा बिंद रुतबे दार था। डाकू की तरह चेहरा था उसका। बड़ी बड़ी मूंछ थी उसकी। शायद ही कभी उसे हंसते देखा। या कभी हंसता भी होगा तो हंसी मूंछ में दब कर रह जाती  होगी। क्या करती मेरे पास तो आता ही नहीं था। सास से बात की तो वह बोली पहन ओढ़ कर रहा कर।

फिर बोली नजर लग गई है तुझे, ओझा से झाड़ा लगवा लावूगी। पर मेरी भी तो सुने कोई। कोशिश की थी,कभी तो बात करे।आखिर  मैं उसकी लु गाई थी । मगर और दिन छोड़ो सुहाग रात को भी मेरे पास नहीं आया। ओलमा दिया तो, आंखे लाल करली।  गुस्सा दिखाया। दूसरी बार उसके पास गई तो वह मुझे हमेशा के लिए छोड़थी। पहली जानी कैसे मर खप गई। दूसरी को मलेरिया खा गया। एक बहु बोली की तुझे इस घेर में टाबर देने के लिए लाया गया है। मैं सिटपिटा गई। मेरा घेर काफी बड़ा था। इसकी डाल बाटी चूरमा का भोज करवाना होगा।  पैसे उधार लिए।वह भी किया। गांव के आदमी कहने लगे।यह मामला तो औरतों का है। इसका बनाया भोजन यदि वे खाने लगे तो हमें कोई आपत्ती नहीं। फिर देखो औरतो की करतूत भोजन तो कर गई मगर उसका कलंक धोने को तैयार नहीं हुई।



 

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