जयपुर। देखा जाए तो सांप और चूहे में दिन - रात का अंतर होता है, मगर कुछ लोग इसमें भी भ्रम के शिकार हो जाते हैं और उन्हें गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ जाता है। ऐसा ही एक वाकिया है कोटपूतली से दो- तीन किलो मीटर दूर एक गांव का है। आबादी क्ष्ोत्र से अलग रेत के ऊंचे टीबे पर सपेरों की ढाणी है। कोई दस ग्यारह परिवार रहते हैं। सभी की आजीविका लोगों को सांप का ख्ोल दिखा कर चलती है। फिर बारीश का दौर शुरू होने पर सांपोंे को पकड़ने के लिए जंगल में चले जाते है। सुबह भौर उठे वे अपनी झोली झंडा और सांप को आकर्षित करने वाली पंुगी आदि सामान लेकर शिकार को खोजने निकल जाते हैं। इस बीच परिवार के बच्चे घर पर अकेले होने पर मिटटी के खिलौने बना कर ख्ोलने में व्यस्त हो जाते हैं। अनेक बार वे जाखिम उठाकर जान से ख्ोल लेते हैं।
कोटपूतली का यह वाकिया दो दिन पहले का है। साठ वर्षीय भोपे रामनाथ घर पहुंचते करते जरा विलंब हो जाते है। तभी इस परिवार में दुर्घटना हो जाती है। ढाणी के निवासियोंे का कहना है कि रात के कोईआठ बजे थ्ो। । सांझ की रोशनी धुंधली हो चुकी थी । घर में लाइट की सुविधा नहीं थी। रोशनी के लिए लालटेन जलानी होती थी। यह जिम्मेदारी बच्चों की मां पर थी। सूत्र यह भी बताते हैं कि मां-बाप के घर लौटने में देरी होने पर वे आंगन में बैठ कर मिटटी का घर बनाने के ख्ोल में व्यस्त थ्ो। तभी वहां मौजूद एक बिल मेें उन्हें हलचल सी दिखाई देती है। दिमाग मे जिज्ञासा बन जाती है, आखिर क्या है इस के भीतर । बिल के मुंह पर कोई जीव का मुंह दिखाई देता है।
जो बार- बार बिल के भीतर और बाहर निकलता है। बिल में चूहे की संभावना को देख कर पांच साल का बालक बच्चू पास रखी छोड़ी सी छड़ी लेकर बिल में घुसा कर जीव को बाहर निकालने की कोशिश करने लगता है। काफी प्रयासों के बाद भी जब वह जानवार बिल के बाहर नहीं निकलने पर अपना एक हाथ बिल के भीतर घुसा देता हैं। मगर बीच उसे करंट का सा अनुभव होता है और अपनी एक ऊंगली का हिस्सा गायब होने पर। दर्द के मारे, छटपटाने लगता है। तेज स्वर में अपनी मां और पिता को पुकारने लगता है। शौरगुल सुन कर राम नाथ का पड़ौसी परिवार उनके के आंगन की ओर दौड़ता है। बच्चे की हालत देख कर उसके चेहरे पर हैरानी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। उसका तजुर्बा कहता था कि ऐसा घाव चूहा नहींकर सकता । जरूर ही बिल में कोई खतरनाक जानवर घुस गया है। आंगन में रख्ो फावड़े से बिल को खोदने लगता है। तभी एकाएक सांप उस पर अटेक करता है। मगर सतर्कता बरतने पर अपने आपको बचा लेता है।
इस बीच राम नाथ सपेरा अपनी प‘ि के साथ घर पहुंचता है। भीतर का सीन देख कर उसका शरीर पसीने से भर जाता है। पांच साल के बच्चे की हालत सोचनीय जानकर अपने झोपे में रखी सांप का जहर उतारने वाली जड़ी बूटी लाता है। मगर बच्चे की हालत निरंतर गिरती देख कर वह उसे कोटपूतली के सरकारी अस्पताल ले जाता है। मगर तब तक बच्चे की हालत और अधिक सीरियस हो जाती है। उसक ी दोनों आंखों से दिखाई देना बंद हो जाता है। केस काबू के बाहर होने पर वहां के चिकित्सक पेसेंट को जयपुर के जे.के.लॉन अस्पताल के लिए रेफर कर देता है। वहां की इमरजैंसी इकाई के ड्यूटी डॉक्टर बच्चे को आईसीयु इकाई के लिए रेफर कर देता है। वहांं पहुंचने तक बच्चा ल्ांबे सांस लेने लगता है। बेहाशी आने के साथ- साथ उसका शरीर नीला पड़ जाता है। मुंह से सफेद रंग के झाक छिटक कर उसके कमीज पर जमा होने लगते हैं। बच्च्ो की हालत बेहद सीरियस देखकर उसे वेंटिलेटर मशीन पर रख दिया जाता है। तभी चिकित्सक का सवाल परिजनोंे से पूछ बैठता है। आखिर कौन से सांप ने अटेक किया। इसकी जानकारी होना आवश्यक है। सपेरे खुद असमंजस में पड़ जाते हैं।
सांप का देशी नाम काली भाटी बताते हैं। सांप का रंग गहरा काला है। जिस पर सफेद रंग के धब्बे बने हुए हैं। सांप का साईज अधिक नहीं है, कोई दो तीन फुट के आसपास है। आरंभिक पड़ताल में सांप बेहद जहरीला होने की संभावना देख कर बच्चे का उपचार तुरंत ही शुरू कर दिया जाता है। सोमवार को सुबह तक बच्च्ो की हालत में मामूली सा सुधार दिखाई देने लगता है, मगर आंखों का अंधापन अब तक कोई अच्छा संकेत नहीं दे रहा है। चिकित्सकों का कहना है पहले की तुलना में बच्चे मेंं अच्छा सुधार है, मगर खतरे से बाहर नहीं है। ठीक होने में दो - चार दिनोंं का वक्त लग सकता है। गरीब रोगियोंे के ईलाज को लेकर जे.के.लॉन अस्पताल की रिपोर्ट अच्छी है। बच्चे के इलाज में काम आ रहे महंगे इंजेक्शन की निशुल्क व्यवस्था अस्पताल की ओर से की जा रही है। इस तरह के वाकिए को देख कर सपेरा परिवार बतियाने लगते हैं। सांप हो या और कोई जहरीला जीव शिकार करने या पकड़ते वक्त पूरी सावधानी बरतनी आवश्यक है। वरना किसी भी वक्त जानलेवा हालातोंे का सामना करना पड़ जाता है।