Jaipur : विश्व में मंदिर तो काफी देखे होंगे, मगर जैनियों के स्वर्ण मंदिर का कोई मुकाबला नहीं है

Samachar Jagat | Tuesday, 13 Sep 2022 09:18:53 AM
Jaipur : You must have seen many temples in the world, but there is no match for the Golden Temple of Jains.

जयपुर। देखा जाए तो स्वर्ण मंदिर का नाम सामने आते ही अमृतसर की याद आती है। मगर जैन दर्शन में इसका भी सवाश्ोर मौजूद है। यह देवालय अजमेर मंे स्थित हैं। बताया जाता है कि वर्ष 2००4 में भारत के तत्कालीन उप राष्ट्रपति श्री भ्ोरोंसिंह श्ोखावत ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था। तब इसकी खूबसूर्ती को देख कर वे भी आश्चर्य चिकित रह गए। कहा जाता है कि इस खूबसूरती का राज, इस मंदिर की स्वर्णिम दीवारें और खम्भों पर सोने की परत चढा कर फू ल पत्तों की चित्रकारिता ने इनका सौंदर्श और अधिक हो गया है।

मंदिर को देखे जाने पर यह बात हर भक्त के दिमाग में आती है कि इतना सोना आया कैसे। इसकेे जवाब में बताया गया है कि यह स्वर्ण क्ष्ोत्र की महिलाओं ने दान में दिया था। मंदिर की खूबसूरती की बात की जाए तो इस पर सोने से उकेरी गई फूल की बारीकी कलाकृति शिल्पकार की काबलियत को दर्शाती है। बेलोंं के अलावा तरह- तरह के बहुत सारे धार्मिक चित्र भी बनाए गए हैं। मंदिर का देवालय सजावट के मामले मंे अन्य मंदिरों से इक्कीस ही है। यहां के जिनालय में विराजमान जैन धर्म के प्रथम तीथर्ंकर भगवान ऋषभ देव की इस प्रतिमा की विश्ोषता इसके जीवंत दिखाई देना है।

मंदिर के इतिहास पर विचार किया जाए तो इस संदर्भ में कहा जाता है कि भारत वर्ष में स्थापित अयोध्या नगरी का यह दृश्य प्रकृति की खूबसरती से युक्त अजमेर का है। जिसे सोनी जी की नसियां के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर की मनोरम छवि का आनंद लेने के लिए देश- विदेश के लाखों लोग वहां आकर आध्यात्म और उसकेे साथ- साथ इसकी अदभुद शिल्पकारिता को देखने का आनंद लूटते हैं। स्थानीय जैन बंधुओं का कहना है कि इस देवस्थान में पंचकल्याणक का दृश्य तो और भी सुंदर चित्रित किया गया है। वहां का सुमेरू पर्वत का निर्माण तो जयपुर में करवाया गया था। इसकी कृति आचार्य जिन सैन द्बारा रचित आदि पुुराण पर आधारित है। वहां के देवालयोंं मंे विराजमान मूर्तियों पर भी सोने की परत चढाई गई है, जिससे वे जीवंत प्राय: महसूस होती है।

स्वार्णिम अयोध्या के पंचकल्याणकोंं में गर्भ कल्याणक - माता मेरू देवी ने रात्रि में 16 स्वपÝ देख्ो थ्ो। जिसके फलानुसार भावी तीर्थकर का अवतरण अयोध्या में हुआ था। इसमें देव विमान और माता के स्वप्न दिखाए गए हैं। ऋषभ देव के जन्म पर इंद्र के आसन कंपायमान होने और एरावत हाथी पर बालक ऋषभ देव को सुमेरू पर्वत ले जाने, पांडू शिला पर अभिष्ोक और देवों की शोभायात्रा को दर्शाया गया है। तन कल्याणक महाराज ऋ ष्पभ देव के दरबार में अप्सरा निलांजना का नृत्य, भगवान ऋषभ देव के द्बारा संसार के तमाम सुख त्याग कर दिगम्बर मुनि बनने और केशलोचन को बताया गया है। केवलज्ञान पंच कल्याणक- हजार वर्ष की तपस्या में लीन ऋषभ देव को प्रथम आहार दिए जाने का सीन बताया गया है। मोक्ष कल्याणक भगवान ऋषभ देव का कैलाश पर्वत से निर्वाण का स्वर्ण कमल दृàश्य पुत्र भरत द्बारा 72 स्वर्णमंदिरों का दर्शन इस कला के जरिए करवाया गया है।



 

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