जयपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश दिनेश चंद्र सोमानी ने कहा कि जब तक समाज में सामाजिक कुरीतियां रहेंगी तब तक कोई समाज आगे नहीं बढ़ सकता। बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है और राजस्थान के पीछे रहने में यह एक बहुत बड़ा कारण है।
सोमानी ने करौली में बाल विवाह की रोकथाम के लिए विशेष अभियान के उद्घाटन के दौरान कहा कि समय के बदलाव के साथ भी लोग बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति को छोडऩे को तैयार नहीं हैं। विज्ञान भी कम उम्र में विवाह करने की इजाजत नहीं देता। बाल विवाह से बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास भी रुक जाता है और इसका प्रभाव हमारे समाज के विकास पर पड़ता है।
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उन्होंने कहा कि इससे व्यक्तित्व का विकास रकने के साथ साथ ही मातृ-मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है। सोमानी ने कहा कि बाल विवाह में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करने वाले, अनुमति देने वाले और इसमें शामिल होने वाले पंडित, प्रिंटिग प्रेस, फोटोग्राफर, नाई, अतिथि, बैण्ड वाले, हलवाई एवं स्थान उपलब्ध कराने वाले सभी कानूनी रूप से दोषी हैं।
उन्होंने बाल विवाह की रोकथाम एवं आम जन को जागरूक करने के लिये एक मोबाइल वैन एवं रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। जिला विधिक प्राधिकरण के अध्यक्ष चं प्रकाश सोनगरा ने कहा कि समाज को जागरूक कर हम सबके सामूहिक प्रयासों से ही बाल विवाह पर अंकुश लगाया जा सकेगा।
जयपुर में जिला प्रशासन एवं राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा बाल विवाह रोकथाम अभियान के संबंध में आयोजित समारोह में बोलते हुए राजस्थान विधिक सेवा के सदस्य सचिव एस के जैन ने कहा कि बाल विवाह जैसी कुरीति को समाज से हमेशा हमेशा के लिये खत्म करना है। इसमें सभी लोगो का सक्रिय सहयोग होना चाहिए।
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समारोह की अध्यक्षता करते हुए जिला एवं सत्र न्यायाधीश उमाशंकर व्यास ने बाल विवाह रोकथाम कार्यक्रम में उपस्थित सभी नागरिकों को सक्रिय सहयोग देने का आह्वान करते हुए कहा कि समाज में कुछ कुप्रथा मजबूरी बन जाती है जिसके कारण बाल विवाह प्रथा चली। लेकिन अब इसको हमेशा के लिये समाप्त करना है। - भाषा
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