जयपुर। श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मन्दिर संघीजी सांगानेर में संत शिरोमणी आचार्यश्री 108 विद्यासागरजी महाराज के आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनि पुंगव सुधासागरजी महाराज ने कहा कि भगवान के सामने कभी दु:खी बनकर मत जाना। सुखी बन कर जाना।
हर व्यक्ति भगवान को दु:ख में ही याद करता है, सुख में नही। आज सभी सम्प्रदायों में यही होता है कि भगवान व गुरु को अपने दु:ख ही सुनाने जाते हैं। कभी उन्हें अपनी खुशी नहीं बताते, डरते है कि कहीं मेरी खुशी को देखकर गुरु कोई काम नहीं बता दें।
उदाहरण देते हुये मुनिश्री ने कहा कि घर में जब कोई मेहमान आता है तो हम अपनी दरिद्रता छिपाकर पूरी, अच्छा नाश्ता/खाना खिलाते है। वही काम अपने भगवान के सामने भी करो। अपनी वैभवता का प्रदर्शन करो तो भगवान आपकी वैभवता का विस्तार ही करेगा। आपकी जिदंगी ही बदल जायेगी। असमर्थ बन कर नहीं, समर्थ बन कर गुरु और भगवान के सामने जाओ। श्रावक के पुण्यार्जक का इतना अतिशय है कि साधु के अन्तराय को भी पुण्य में बदल देती है। दाता की पावन विशुद्घि को भी कम मत आंकना।
ऐसी भावना दिखाओं कि आपके कारण अपने गुरु की आंखों में आंसू नहीं आ जावे। जिस दिन आपके कारण गुरु की आंखों में आंसू आ जाये तो समझो आपका बुरा होने वाला है क्योंकि आपको गुरु बहुत चाहता है और आपको दु:खी देखकर गुरु की सामायिक, प्रतिक्रमण बिगड़ जायेगा। जिसका महा पाप आपको लगेगा। और आपको प्रफुल्लित देख कर गुरु प्रसन्न हो जाये तो आपकी जिन्दगी ही बदल जायेगी। इस लिये नियम ले लो कि भगवान को दुख में नहीं सुख में, पाप में नहीं धर्म में, गरीबी में नहीं अमीरी में शामिल करना है।
मुनिश्री ने कहा कि कर्जा लेकर दान करने को सही बताते हुये मुनिश्री ने कहा कि कर्जा लेकर जुआ खेलना, शराब पीना, बुरे व्यसन करने से तो अच्छा है कर्जा लेकर दान करो। कर्जा लेकर कार्य क्या किया जा रहा है परिणाम उससे मिलता है। यह प्रकृति का नियम है कि भगवान को सुख में शामिल करोगे तो सुख बढ़ेगा और दु:ख में शामिल करोगें तो सुख बढेगा।
सांगानेर वाले बाबा के अभिषेक एवं पूज्य मुनिश्री के पाद प्रक्षालन, चित्रानावरण एवं दीप प्रज्ज्वलन श्रेष्टी श्रावक सुशील जैन मोदीनगर, सोहनलाल जयपुर, राहुल जैन आगरा, दीपककुमार जैन चन्द्रपुर, संजयजैन आवां ने किया।