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इंटरनेट डेस्क। एयर इंडिया की सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरु पहुंची फ्लाइट में शनिवार रात एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की गई। ये पहला मौका था जब सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरू तक लगभग 16000 किमी की दूरी को चार महिला पायलटों ने बिना किसी पुरुष पायलट के पूरा किया। शनिवार रात कैम्पेगौड़ा इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर जैसे ही एयर इंडिया की फ्लाइट ने लैंड किया तो हर किसी की जुबान पर इन चार महिलाओं के चर्चे थे। एयरपोर्ट पर लैंड करने के बाद फ्लाइट में मौजूद सभी यात्रियों ने चारों महिला पायलटों के जज्बे को सलाम किया।
इस फ्लाइट के साथ ही भारत की वीर महिलाओं के नाम सफलता का एक नया अध्याय और जुड़ गया है। बता दें कि एयर इंडिया की सबसे लंबी सीधी रूट की उड़ान सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतर गई है, जो उत्तरी ध्रुव के ऊपर से होते हुए पहुंची है, जिसकी दूरी लगभग 16000 किलोमीटर की है। बड़ी बात यह है कि बिना किसी पुरुष पायलट के चार महिला पायलटों ने इस उड़ान को भरा। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी ट्वीट करते हुए लिखा कि कॉकपिट में पेशेवर, योग्य और आत्मविश्वासी महिला चालक दल ने एयर इंडिया के विमान से सैन फ्रांसिस्को से बेंगलुरु के लिए उड़ान भरी है और वे उत्तरी ध्रुव से गुजरेंगी। हमारी नारी शक्ति ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।
इस विमान को उड़ाने वाली महिला पायलटों में कैप्टन जोया अग्रवाल, कैप्टन पापागरी तनमई, कैप्टन आकांक्षा सोनवरे और कैप्टन शिवानी मन्हास शामिल थी। कैप्टन जोया अग्रवाल ने इस दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि हमने न केवल उत्तरी ध्रुव पर उड़ान भरकर, बल्कि सभी महिला पायलटों के साथ उड़ान भरके इतिहास बनाया है। हम इसका हिस्सा बनकर बेहद खुश और गर्व महसूस कर रहे हैं। इस मार्ग से 10 टन ईंधन की बचत हुई है। यह बड़ी बात इसलिए भी है क्योंकि उत्तरी ध्रुव के ऊपर से होते हुए विमान उड़ाना काफी मुश्किल होता है और विमानन कंपनियां अनुभवी पायलटों को ही इस रूट पर भेजती हैं। एयर इंडिया के सूत्रों के मुताबिक, उड़ान संख्या एआइ-176 शनिवार को सैन फ्रांसिस्को से रात 8.30 बजे (स्थानीय समयानुसार) रवाना हुई और एक महिला पायलट द्वारा बताया गया कि 17 घंटों के बाद यह बेंगलुरु पहुंची।
एयर इंडिया की सैन फ्रांसिस्को-बेंगलुरु उड़ान का संचालन करने वाली चार पायलटों में से एक, शिवानी मन्हास ने कहा, यह एक रोमांचक अनुभव था क्योंकि यह पहले कभी नहीं किया गया था। यहां तक पहुंचने में लगभग 17 घंटे लग गए।