नई दिल्ली। पराई कोख से संतान सुख हासिल करने की वैज्ञानिक सुविधा के व्यावसायिक दुरुपयोग को रोकने के उद्देश्य से सरकार ने सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2016 को संसद में आज पेश किया।
नोटबंदी को लेकर विपक्ष के हंगामे के बीच केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्ढा ने लोकसभा में इस विधेयक को पेश किया। इस विधेयक को गहन विचार-विमर्श के लिए संसद की स्थायी समिति के पास भेजा जाना है।
गरीब महिलाओं के शोषण का जरिया और अमीरों का शौक बनते जा रहे किराए की कोख के व्यवसाय पर सख्त रुख अपनाते हुए इसे प्रतिबंधित करने से संबधित इस विधेयक को अगस्त में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी। सरोगेसी विधेयक में किराए की कोख के व्यावसायिक इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की व्यवस्था की गई है।
इसमें किसी भी तरह के आर्थिक लेन-देन को गैर कानूनी ठहराया गया है। सरोगेसी सिर्फ निसंतान दंपतियों के लिए अनुमन्य होगी। सरोगेसी से बच्चे हासिल करने का हक भारतीय नागरिकों के लिए करीबी रिश्तेदारों तक सीमित कर दिया गया है।
पीआईओ कार्डधारक विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोग और विदेशियों को इसकी इजाजत नहीं होगी। उनके लिए यह पूरी तरह प्रतिबंधित रखा गया है।
इस विधेयक में सरोगेसी क्लीनिकों का प्रमाणन एवं सरोगेसी की प्रक्रियाओं को परिभाषित किया गया है। इसमें राष्ट्रीय एवं राज्य सरोगेसी बोर्डों का गठन, समुचित प्राधिकारी की नियुक्ति, सरोगेसी से उत्पन्न संतानों एवं उनकी माताओं के शोषण को रोकने तथा ऐसी दशा में अपराध को संज्ञेय गैर जमानती बनाने आदि के प्रावधान किए गए हैं।
सरोगेसी विधेयक इसलिए लाया गया है क्योंकि भारत लोगों का सरोगेसी हब बन गया था और अनैतिक सरोगेसी की घटनाएं सामने आती रहती हैं।
नयी व्यवस्था के तहत सरोगेसी से जन्मे बच्चे या उसके लिए जिस महिला की कोख किराए पर ली गई हो उसका किसी भी कारण से परित्याग करने वाले व्यक्ति या क्लीनिक पर दस लाख रुपए के जुर्माने और या फिर 10 साल की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है।
विधेयक के कानून का रुप लेने के बाद इसके अनुपालन पर 10 महीने की छूट रहेगी ताकि पहले से सरोगेसी से गर्भ में आ चुके बच्चे के जन्म में किसी तरह का कानूनी विवाद न पैदा हो सके।
इन नियमों के अनुपालन और निगरानी तथा इस बारे में सुझावों के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में एक बोर्ड का गठन किया जाएगा। इसके लिए केन्द्र और राज्य स्तर पर एक सक्षम प्राधिकरण का गठन किया जाएगा।
विधेयक की व्यवस्थाओं के तहत निकट संबधियों में कुछ शर्तों के साथ सरोगेसी की छूट दी गई है लेकिन ऐसी कोई भी महिला अपने जीवनकाल में एक ही बार अपनी कोख किराए पर दे सकेगी, वह इसके लिए तभी समर्थ मानी जाएगी जब वह पहले से एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे चुकी हो। महिला का विवाहित होना अनिवार्य होगा। कोई महिला विवाह के पांच वर्ष बाद ही सरोगेट मदर बन सकेगी।
सरोगेसी से बच्चा चाहने वाले माता-पिता के लिए उम्र की बंदिश भी लगाई गई है। इसके लिए माता की उम्र 23 से 50 वर्ष और पिता की उम्र 26 से 55 वर्ष रखी गई है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि बच्चे के लालन-पालन की जिम्मेदारी उठाने के लिए अभिभावक पूरी तरह परिपक्व हो।
अविवाहित महिला या अविवाहित पुरुष को सरोगेट बच्चे का अधिकार नहीं होगा जिनके पहले से अपना बच्चा है या फिर जो बच्चा गोद ले चुके हैं और वे और बिना विवाह के पति-पत्नी की तरह रहने वाले भी सरोगेसी से बच्चा लेने के हकदार नहीं होंगे।
बच्चा जन्म देने में असमर्थ दम्पति को सरोगेसी से जन्मा बच्चा पाने के लिए अपना मेडिकल सर्टिफिकेट देना होगा और पहले बताई गई सभी शर्तों को भी पूरा करना होगा।
विधेयक की व्यवस्थाओं के तहत सरोगेसी के लिए मेडिकल सेवाएं देने वाले क्लीनिकों का पंजीकरण अनिवार्य बनाया गया है। यह भी तय किया गया है कि ऐसे क्लीनिकों को उनके यहां सरोगेसी प्रक्रिया से जन्मे बच्चों का 25 साल तक रिकार्ड रखना होगा ताकि आगे कोई कानून विवाद होने या किसी तरह का दुव्र्यवहार होने की स्थिति में बच्चों अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सके।
विधेयक में सरोगेसी से जन्मे बच्चे को हासिल करने वाले माता-पिता को उसे अपनी संतान या फिर पहले से गोद ली गई कोई संतान (यदि है तो) के समान ही सारे कानूनी अधिकार देने होंगे।
मंत्री ने कहा, हमने उन्हें आश्वस्त किया कि हम इस बारे में वित्त मंत्रालय को त्वरित व विस्तृत रपट पेश करेंगे ताकि त्वरित राहत समाधान पेश किया जा सके। हम उनकी बात रखेंगे और उम्मीद करेंगे कि वित्त मंत्रालय सहानुभूति से विचार करेगा। उन्होंने कहा कि नकदी निकासी सीमा पर वे निश्चित रूप से वित्त मंत्री अरूण जेटली का ध्यान आकर्षित करेंगी।