मेरे परिवार का खुशनुमा गार्डन था। किसी बात की कमी नहीं थी। लगता था, दुखडो के कलंक से कभी सामना नहीं होगा। मगर कहा गया है न वक्त पर किसी का बस नहीं चलता। जिंदगी के पड़ाव पर ऐसा ही कुछ हुआ। बेगम खुशी का समाचार ले कर आई। वह चाहती थी कि हमारे आंगन में चांद आए। मगर मैं चांदनी चाहता था। फिर खुशी का दिन भी आगया। हमारे परिवार में प्यारा सा चांद खिल गया। दिन गुजरते वक्त नहीं लगा। बेगम एक बार फिर खुसियो की लाटरी लगी मगर इस बार भी मुझे हार का मुंह देखना पड़ा।
फिर बेटे की तुतली बातें मेरी यादों में घुलने लगी। उनके प्यार का दीवाना हो कर अपने आप को खोदिया। दिन रात उनके संग जीने लगा। उनके गुदगुदे गाल और माथे पर दुनियां भर की लकीरें, जैसे बूढ़े मेरे अब्बा आगये । उनका मुस्कुराना और बात बात पर मचलना। कमाल का बेहब था। वक्त के साथ बच्चों की अम्मी अल्लाह को प्यारी हो गई। मुझ पर जिम्मेदारी बढ़ गई। दोनों बच्चों को मां और बाप दोनो का प्यार देना पड़ा। अपने अपने हक को लेकर उनके बीच कई बार तो मार पीट भी हो जाया करती थी। यह सब बाल लीला समझ कर कभी भी उनके बीच नही आया करता था। अरमानों का यह महल अधिक दिन नही चला। मेरी हड्डियां बुढ़िया ने लगी थी। पावों के दर्द के मारे चला फिरा नहीं जाता था। मेरी दुकान पर ग्राहिकी कम होने लगी। इस पर दोनों बच्चों को बुलाया। अपनी मजबूरी बताई। बच्चों से कहा मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।
दो वक्त को डाल रोटी,बस। ज्यादा दिन नही गुजरे,दिनों बच्चों के तेवर बदलने लगे। मुझ बूढ़े पर ताने मारने लगे। मेरे मासूम पोते पोतियों को हिदायत दी। इस बूढ़े के पास जाने की जरूरत नहीं। कभी छुपते छुपते गए तो ऐसा पीटा जाएगा कि हां बस। मैं क्या करता। बच्चों के मासूम चेहरे को देख कर दुख होता था। मौका पाकर उन्हें प्यार से बुलाया करता था तो उनके चेहरे पर भय की झलक दिखने लगती थी। दिन ज्यादा नहीं गुजरे होंगे। मेरी दो रोटियां भी उन्हें भारी पड़ने लगी। मेरे अंधेरी कुटिया के पास आकर बहु ये ताना मारा करती थी। जैसे कितना खाता है ये बूढ़ा। एक तो मंगाई बढ़ गई फिर ये बूढ़ा । मर क्यो नहीं जाता ।इसकी सेवा कौन करेगा। हर वक्त थूकता रहता है। बेटो की ज्यादती बढ़ती ही गई। उनकी ज़िद थे कि इस पुराने मकान को बेच दिया जाय दुकान को कौन संभालेगा। इसे भी बंद करो। शहर की जिंदगी जीने का मजा ही ओर है।
रहा सवाल आपका , आश्रम में आराम से रहेंगे। हमारे साथ रहोगे मगर कैसे। आपकी बहू को टाइम नहीं मिलता। बच्चों का काम बहुत रहता है। फिर आपकी सेवा। अब हमारे बस की बात नही है। आपका खर्चा भूत रहता है। जाने क्या क्या बीमारियां पाल रखी है। आपके पीछे हम भी बीमार होजाने है। अपने बच्चों की बातें सुन कर भाईजान को गुस्सा आया। पूरी रात रोते रहें। फिर देर रात जब सभी गहरी नींद में सो गए तो चुपचाप घर से निकल गए। खाली हाथ। ओढ़ने बिछाने के कपड़े। नंगे पांव। कई देर चलते थे। ना कोई मंजिल। ना कोई सहारा देने वाला। कुछ दूरी पर बड़ी चौपड़ के पास,कुछ ऑटो वाले आग में तप रहे थे। उनके पास बैठ कर यादों में खो गए। आंखे भर आई। कुछ कहने सुनने की हालत में नहीं थे।
रिक्शा चालकों को दया आई। खाने को सूखी ब्रेड खाने को दी सहारा कोई नहीं पाकर आश्रम भी गए। मगर वे आई डी मांगने लगे।कहां से आईडी। जो कुछ था,सब पीछे छूट गए। प्लेट फार्म पर ही जा बसे। रात के समय पुलिस वाले परेशान करते थे। और कुछ नही तो डंडा मार दिया करते थे। फिर बुरा ही क्या,भाईजान जहर का घूंट पीते रहे। कोई अपना नहीं था। खुद के जैसे फुटपाथियों के संग अपना वक्त गुजाने लगे। बेटों का हाल तो और भी खराब था फर्जी वड़ा करके मकान और दुकान दोनो हाड़प ली। बेचने की कौसिस में थे। भाईजान को पता चला तो उन्होंने कानूनी रास्ता अपनाया। पुलिस की मदद से उन्हें घर से बाहर कर दि