जयपुर। आम तौर पर लोगों में धारणा होती है कि सरकारी अस्पतालों की तुलना में प्राईवेट अस्पतालोंे में ही बीमारियों का सफल उपचार हो सकता है। मगर इस तरह की ये धारणा अनेक बार सही नहीं हो पाती। लाखों रूपए खर्च होने के बाद भी पेसेंट की मौत हो जाती है। बात यहीं समाप्त नहीं हो पाती, निज अस्पतालों के महंगे बिल चुकाने के चक्कर में पीड़ित परिवार कंगाल हो जाता है, रोटियों के लाले पड़ जाते है। इसके बाद भी उपचार के परिणाम उसके पक्ष में नहीं हो पाते। सही तरह का ईलाज ना होने पर केस इस कदर बिगड़ जाता है कि रोगी की जान बचानी मुश्किल हो जाती है।
इसी तरह का एक दर्दनाक मामला इन दिनों जयपुर के जे के लॉन में चर्चा का विषय बना हुआ है। जानकार सूत्रांें का कहना है कि हाथरस के निकट नगलाफता गांव के निवासी विजेन्द्र सिंह के परिवार में विगत समय में तीन बच्चोंे ने जन्म लिया, मगर इनमें कोई भी जीवित नहीं बच सका। हाल ही में विजेन्द्र की पत्त्नी ने एक और पुत्र को जन्म दिया तो परिवार के सदस्यों ने इसके रखरखाव में अपने हिसाब से कोई कमी नहीं रखी। उसका पूरा ध्यान रखा। मगर कहते हैं कि अनेक बार व्यक्ति की किस्मत साथ नहीं देती । परिणाम उनके पक्ष में नहीं हो पाता है। यही हालात विजय सिंह को भी भुगतने पड़े।
सूत्र कहते हैं कि कुछ समय पहले विजेन्द्र सिंह के बच्चे काना राम को पीलिया की शिकायत हो गई थी । ऐसे में कुछ दिनोें तक उसका देशी इलाज या टोटका चलता रहा। मगर उसकी तबियत सुधरने की बजाए और अधिक बिगड़ जाने पर वे अपने बच्चे को लेकर हाथरस, मथुरा और आगरा के प्रतिष्ठित निजी अस्पतालों मेंे गए। एडमीशन के समय उम्मीदों की बारीश करदी। काना राम की बीमारी उनकी समझ में नहीं आई। हार कर काना राम को जयपुर के जे के लॉन अस्पताल लाया गया है। वहां के चिकित्सकोें की टीम काना राम की जान बचाने की कोशिश में जुटी हुई है।
बीमार बच्चे के परिजनोंं का कहना है कि यूपी के अनेक प्राईवेट अस्पताल में भी परिजनों को आशाजनक परिणाम नहीं निकलने पर , वहां के बिल चुकाने में कई हजार रूपए के बिल चुकाने पड़े। जबकि इसकी तुलना में जयपुर के जेके लॉन अस्पताल में अधिकतर दवाएं अस्पताल की ओर से मिल रही है, मगर अफसोस इस बात का है कि काना की जान बचने की कोई गारंटी देखने क ो नहीं। मिल रही है। जयपुर के चिकित्सकोें का कहना है कि लीवर की बीमारियां प्राय:कर बेहद खतरनाक होती है। उपचार में जरा भी चूक या देरी हो जाने पर रोगी की जान मुश्किल में पड़ जाती है।
यही बात काना राम के केस में देखने को मिल रही है। सूत्र कहते हैं कि रोग की पहली स्टेज में ही यदि बच्चे को ईलाज के लिए वहां लाया जाता तो आवश्यक सर्जरी के बाद संभवतया वह ठीक होजाता है, मगर काना राम का केस दिनों- दिन कॉम्पलीकेट होता जा रहा है। उसके लीवर की मुख्य नली में किसी कारण रूकावट आ गई है। पीलियां चौथी स्टेज में है। इस पर उसके जीने की उम्मीद जीरो हो चुकी है। हाल इस कदर खराब हो गए हैं कि विजेन्द्र सिंह के परिवार केे पास घर जाने तक के पैसे नहीं है। जयपुर में कोई परिचित भी नहीं है। आध्यात्म और धर्म संस्था की भोजन बांटने वाली गाड़ी की प्रसादी से ही पेट भर रहा है।