जयपुर। समय से पहले पैदा होने वाले बच्चों में कोई ना कोई शारीरिक कमी रह जाती है। किसी के शरीर में भोजन नली और श्वांस नली जुड़ी हुई होती है। किसी के पॉटी करने का रास्ता नहीं होता। ऐसे में उनक े शरीर का मल बाहर निकालने के लिए कृत्रिम मार्ग बनाना पड़ जाता है। जिसका उपचार मुश्किल हो जाता है। बच्चों के सर्जन्स को काफी मशकत करनी पड़ जाती है। फेफड़ोे की विकृति में बच्च्ो की हालत नाजुक बनी होती है। सांस ठीक से नहीं ले पाने पर उसे लाईफ सेविंेग मशीनोंे के सपोर्ट पर रखा जाता है।
बे्रन की समस्याओं में कई बच्चांे में दिमाग में पानी भर जाने पर उसका सिर फुटबाल की तरह बड़ा हो जाता है। यह केस दस दिन की एक बच्ची चांद का है। कहते हैं कि उसका जन्म अजमेर के सरकारी अस्पताल में प्राकृतिक डिलीवरी से हुआ था। बच्चा का कं्रदन और पेशाब- पॉटी भी हो गई थी। मगर हैरानी इस बात को देख कर हुई कि बच्ची का पेट खुला हुआ था। और गहरे काले रंग की ये पेट के बाहर निकली हुई थी। बच्ची की समस्या यह भी थी कि आंतोंे की विकृति के चलने वह दूध हजम नहीं कर पा रही थी। भूख्ो पेट वह निरंतर रोए जा रही थी। चांद नामक इस वित्रित बच्ची के जन्म के बाद अजमेर के कई पैडयरेटिक सर्जन ने देखा। सभी की राय थी कि केस सर्जरी का था, मगर ऑपरेशन फिलहाल संभव नहीं था। कारण दो थ्ो, पहला बच्ची एनिमिक थी।
दूसरा आंतों क ा रंग काला पड़ने पर उसमें इनफेक्सन होने की संभावना थी। मामला सीरियस और उलझा हुआ होने पर उसे जयपुर के जे.के.लॉन अस्पताल में शिफ्ट कर दिया था। वहां उसे सघन उपचार इकाई में वेंटिलेटर पर रखा गया है। बच्ची का स्वास्थ्य स्थिर रख्ो जाने का प्रयास किए जा रहे है। बच्ची के पेट की सर्जरी के लिए दो बार डेट फिक्स हो चुकी है, मगर तभी कोई ना कोई लफड़ा हो जाता है। ले देकर केस अगली तारीख के लिए ऑपरेशन टाल दिया जाता है। बच्ची के पिता रामबाबू का कहना है कि वह अजमेर में पत्थर चूने की तगारी उठाने का काम करता है। बच्ची के जन्म के बाद करीब एक सप्ताह से काम पर नहीं जा पाया है। श्रमिक कहता है कि चांद का जब जन्म हुआ तो समस्या यह हो गई थी कि उसे जयपुर कैसे शिफ्ट करना बड़ा मुश्किल हो गया था।
यहां राहत की बात यह रही कि चिकित्सकोे ं ने यह केस सीरियस बता कर अस्पताल के खर्च पर विश्ोष सुविधाओं वाली एंबूलैंस की व्यवस्था की थी। इसी की मदद को सफर पूरा किया था। जयपुर पहुंचने पर उसे तुरंत ही विश्ोष चिकित्सा सुविधाएं निशुल्क प्रदान की गई थी। जे.के.लॉन में उपचार की तमाम सुविधाएं बिना कोई भुगतान की होने के बाद भी यहां ठहरने और भोजन नाश्ते का खर्च भी कम नहीं है। मेहमानोें का आना - जाना लगा रहता है। उनकी सेवा भी करनी होती है। जे.के.लॉन अस्पताल में अटेनेटों के रूकने की कोई व्यवस्था नहीं है। अस्पताल प्रांगण में चिकित्सक ों की कारो के गैरेज में जाकर रात गुजारने की कोशिश की जाती है।
बरसात के मौसम में तो उन्हें पूरी- पूरी रात खड़े रहना पड़ जाता है। यहां के अस्पताल मेें एक बड़ी समस्या शौचालय की भी है। वहां बने सुलभ शौचालय में शौच करने पर दस रूपए की फीस तय की गई है। यदि कोई इसके साथ ·ान भी करना चाहता है, उसे दस रूपए अलग से, याने कु ल बीस रूपए का भुगतान नगर निगम के वर्कर को करना होता है। बहुत सी बार मोसन ठीक से ना होने पर यदि कोई शोैच के लिए पुन: आता है। तो उसे भी प्रति सेवाओं के लिए दस रूपए अलग से देने होते है।