जयपुर। देश भर के जैन मंदिरों के लेकर माना जाता है कि उसमें एक से एक अनूठी विश्ोषता होती है। इन स्थलोें के निर्माण में कुशलतम शिल्पकारोें की कला का उपयोग किया गया था। आप कौशाबी के जैन मदिर का कला कोशल इस कदर अचरज भरा है कि दूर- दूर से लोग वहां आते हैं। देशी और विदेशी पर्यटक शिल्प कला का आनंद लेने वहां बार- बार आते रहे हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर की खासियत उसक ी बेजोड़ नक्कासी है, बेल बूंटों के अलावा घार्मिक चित्रों का बहतायत में उपयोग किेया गया है।
जैन समाज के इस मंदिर में चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान क ी गई है। मंदिर के उपासकों का कहना है कि कौशाबी क ी तपोस्थली में पहले से ही छठे तीर्थंकर पद्म प्रभु का देवालय स्थापित था। यह मंदिर कई दशक पहले बनाया गया था लोगोें की माने तो सालों पहले मुंबई के गौलंग परिवार के चंपालाल जैन नामक साहुकार और उनकी धर्म प‘ि निर्मला जैन यहां पूजा पाठ के लिए आए थ्ो। मंदिर को जीर्ण - क्षीर्ण हालत मेंं देख कर वे द्रवित हो गए। इसके बाद उन्होने संकल्प लिया कि इस पवित्र स्थल का जीर्णोद्धार करके इस स्थान को भव्य बनाएंगे। इस संकल्प के चलते यह स्थल आज पवित्रता और आध्यात्म क ा पवित्र स्थल बन गया है।
छठे पद्मद प्रभु का यह नव निर्मित मंदिर जैन शास्त्रों पर आधारित है। इसे बनाए जाने पर करोड़ों रूपए खर्च हुए बताए जाते हैं। सफेद संगमरमर का बना यह मंदिर रात के समय बड़ी आकर्षक छवि के तौर पर दिखाई देता है। बताया जाता है कि गुजरात के आर्किटेक्ट बाबू लाल की देखरेख मंे यह कार्य करवा गया था। मंदिर का काम शुरू करने से पहले मृदा का परीक्षण भी करवाया गया था। करीब पैतीस शिल्पकारों ने दिन - रात काम करके, यह कार्य संपादित कि या था। हजारोें श्रमिकों की भी खासी भूमिका रही थी।
राजस्थान के मकराना से भी कुशल कारीगरों को बुलाकर समय- समय पर उनकी राय ली गई थी। सभी सामुहिक प्रयासों के साथ एक अनूठापन आज भी लोगों को आश्चर्य चिकित करता है कि इसके निर्माण में लोहे की कील सहित अन्य आईटमों में लोहे का उपयोग किया गया था। वहां के शिल्पकारों ने पत्थरों को तरास कर उसे आकर्षक रूप दिया गया था।