जयपुर। बच्चे के पालन पोषण की बात जब आती है एक सटीक सा सवाल दिमाग में कोंधता है। मां तो आखिर मां होती है। अपनी संतान के लिए वह क्या कुछ नहीं करती। खुद भूLी रहती है। पहले अपनी संतान का पेट भरती है। बीमारी के हालातों में रात - रात भर नहीं सोती। मगर अफसोस, इस बात को होता है। आज का जमाना ही कुछ ऐसा सा बन गया है।
अनेक कलयुगी संतान, बुढापे के समय अपनी मां की सेवा नहीं करते। दुत्कारा करते हैं। सेवा तो दूर कई मौके पर वे अपनी जननी को ठोकर मारने का पाप करते झिझकते नहीं है। यह बात काल्पनिक नहीं है। इसी तरह के ढेर सारे मामले जयपुर में देखने को मिल जाएंगे। ऐसा ही एक ताजा वाकिया यहां के सवाई मान सिंह अस्पताल के महिलाओें के वार्ड थ्री एफ का है। जहां 51 नम्बर के बैड पर एक वृद्धा बदहाली की हालत में लेटी है। हल्के हरे रंग की मैल में डूबी सूती ओढनी पहने हुए है।
कत्थई रंग का पेटीकोट, सिर के दूधिया बाल उलझे हुए हैं। मानों कई माह से नहीं सोई होगी। अफसोस इस बात का है कि इस गरीब वृद्धा को मुख्य मंत्री निशुल्क उपचार योजना केे तहत उपचार के लिए एसएमएस में भर्ती करवाया गया है। मगर आज तक, तीन दिन गुजर जाने के बाद भी उसे ग्लूकोज की ड्रिप तक नहीं लगी है। आवश्यक इंजेक्सन और आक्सीजन दूर की बात थी। यह सीन गत सोमवार का था। रात के दस बजे थे। वार्ड में चहल- पहल और मरीजोंे के हाय-तोबा के स्वर मानों नींद की धुंध मंे सो गए थ्ो। डॉक्टर की सीट पर दो युवा चिकित्सक कागजों में उलझे हुए थ्ो। हर मरीज की पूरी हिस्ट्री लिखनी होती है। फिर उसे दी गई निशुल्क दवाओं का पूरा ब्योरा और तरह- तरह की जांचंे और उनकी रिपोर्ट बिना कोई विलंब के बतानी होती है।
जरूरी भी है, दूसरे दिन युनिट हैड और अन्य सीनियर का दौरा होता है। हर तरह के पेसेंट की डिटेल बतानी होती है। जरा भी चूक होने पर डांट सुननी पड़ती है। आगे अगले दिन.....। भोर होते ही वार्ड का सीन बदल गया है। नर्सिंग स्टाफ ड्यूटी पर आ जाता है। हर बैड क ा गदè्दा और चादर बदलनी होती है। रात भर में पेसेंट का ब्लड प्रेशर और पेशाब का आउट पुट नोट किया जाता है। व्यस्तता के इस मौके मेंे रोगी के तमाम अटेनेंटोे क ो वार्ड से बाहर निकालना जाता है। ताकि चिकित्सकोें के राउण्ड केसमय किसी तरह क ा कोई दखल ना हो। प्राय:कर ऐसा जरूरी भी होता है। मरीजों को लेकर तमाम आवश्यक सूचनाएं एकत्रित हो चुकी थी। इन सभी के बीच अज्ञात महिला की बेहोशी की ओर किसी की नजर नहीं गई थी। सीनियर्स के राउण्ड से पहले जूनियर चिकित्सक, कई बार इस इस बैड के आसपास से गुजरे होंगे। मगर वह अनजान लावारिस महिला, सच पूछो तो उनके मन को कचोटती होगी। फिर होना भी चाहिए। आखिर मानवता भी कोई मायने रखती है।
जूनियर चिकित्सक को माफ भी किया जा सकता है। काम का बोझ अधिक हो जाने पर उससे चूक भी हो सकती है। मगर और भी कई तरह क ा स्टाफ वहां दिन- रात मंडराता रहता है। बात यहां लापरवाही की बेशक मानी जाए। कुछ और तथ्य दिखाई दे रहे थो। बैड पर चादर नही थी, बैड बदहाली की अवस्था में था। अन्य पेसेंटोें की तरह इस पेसेंट के पलंग पर गर्म कंबल और तकि या आखिर क्यों नहीं था। प्रशासन से सवाल नहीं किया जा सकता था। वहां वार्ड की दिवार पर ही एक सूचना चिपकी हुई थी। कोई भी सख्स यदि चिकित्सक या अन्य स्टाफ के साथ बदसलूगी करता है तो उनके खिलाफ पुलिसिया कार्रवाही की जाएगी। ऐसे वाकिए यहां इस अस्पताल मेंे बड़े आम हो गए है। वाकि या उस वक्त विवादित हो जाता है जब किसी पेसेंट की उपचार के दौरान किसी संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो जाए। लाश उठाने को लेकर हंगामा हो जाए। अपने परिवार के सदस्य की मौत होने पर चिकित्सकों के खिलाफ नाराजगी दिखादी जाए। मामला राष्ट्र विरोधी हो सकता है। नहीं हो तो कोई बात नहीं। पुलिस की खोपड़ी कुछ भी एक्सन ले सकती है।
बदहाली की बातें अधिक नहीं। इसका कोई अंत नहीं है। हर कोई बोर होने लगा है। बात यहां लावारिस गरीब मां की चल रही थी। इसी में सिलसिले मे ं चिकित्सकोें की टीम पूरी चुस्ती के साथ वार्ड में प्रवेश करती है। बड़े साहब पर जिम्मेदारी अधिक रहती आई है। ऐसे मेंे हर बैड पर अधिक से अधिक एक मिनट क ा स्टोपेज होता है। कोई केस क्रिटिकल होने पर वार्ड की चिकित्सकों के कक्ष में मीटिंग हो जाती है। उपचार को लेकर चिंतन होने लगता है। मगर सीरियस तो वह वृद्धा भी थी। निकट के बैड वाले पेसंंेट के अटेनेंट बताते हैं कि वृद्धा तीन दिनों से इसी हालत में पड़ी है। उपचार के तौर पर क्या कुछ किया होगा। इस बारे में अजीब सा व्यवहार। कोई पूछताछ नहीं थी। एक बात जरूर सामने आती थी कि पेसेंट को यहां कौन लाया होगा। पुलिस या परिजन। जो भी हो, एक बात जो कि बेहद शर्मनाक थी, इसकी गहराई बेहद शर्मनाक है।
कहा जाता है कि वृद्धा चार बेटोंे की मां है। सभी नौकरी पेसे वाले हैं। परिवार की आर्थिक हालत ऐसी कोई खास चिंताजनक नहीं थी। फिर भी.. दुनिया है। आज के समय में कुछ भी हो सकता है। बीमार मां को अस्पताल के इनडोर वार्ड में डाला और चम्पत। वार्ड के चिकित्सक या अन्य स्टाफ से संपर्क किया ही नहीं था। इसी की परिणिति रही होगी। वार्ड के अन्य पेसेंट सभी हैरान थ्ो। मरो रे, आज के जमाने में मां की इस क दर दुर्गति। वाकई चिंता की बात थी।