जयपुर। जिंदगी कौन नहीं चालता। मगर जयपुर में एक सख्स ऐसा भी है, जो जिंदगी से उफता गया है। कैंसर रोग के उपचार के लिए दी जा रही कीमो थ्ैारेपी और रेडियों थैरेपी को सहन नहीं कर पाया है। बीमार सख्स का नाम रहमत खान है। सवाई माधोपुर के निप्कट बोली नामक गांव का रहने वाला है। खेती की जमीन कम होने पर गांव में खुली मजदूरी भी करता है। रहमत खां से मुलाकात जयपुर की बांगड. उपचार इकाई के बाहर हुई थी।
चाय- नाश्ते की थडि.यां और आपस में बतियाते लोगोें की खुूसर- फुसर का मीठा- मीठा सा शोर। ई- रिक्सा के जमधट के बीच। फ्रट ज्यूस के आधा दर्जन के लगभग ठेले। तभी कोई अजनबी आवाज सुनाई देती है ... घर जाने दो मुझे। ....। जीना नहीं चाहता। मर सा गया हूँ , ऐसी जिंदगी जीते- जीते। कोई चालीस साल का सख्स है। सवाई माधोपुर के निकट बोली कस्बे का रहने वाला है। मध्यम श्रेणी का काश्तकार है। सफेद रंग की पोशाक पहने। मैल खाया, घुटनों तक लंबा कुर्ता। धोती को लुंगी की तरह बाँधो हुए। सवाल के भीतर से फिर से उठता सवाल...। आखिर क्यों चाहता है मौत। जिंदगी हर कोई चाहता है। फिर यह अजीब सा ख्याल।
दुखी मानव का नाम रहमत खान है। सवाई माधोपुर में ही किराने की दुकान करता है। चार बेटियां है ।
जिनमंें केवल एक का ही विवाह कर पाया है। दो बेटे अभी छोटे ही हैं। अभी पढ रहे है। दिल किया, देख्ेा तो सही, आखिर क्या है इसके भीतर सड.ती पीड.ा, मगर बात करने की हालत में नहीं था। रहमत के निकट ही उसका छोटा भाई असरत ही ,अपने बड.े भाई की सेवा रहा था। उसी ने बताया कि बड.े भईया को एक साल से ही गले में कोई परेशानी है। पहले घर पर ही देशी इलाज लेता रहा। आराम नहीं मिला तो सवाई माधोपुर के ईएनटी विश्ोषज्ञ को दिखाया। वह भी बीमारी नहीं पकड. सका था। उसकी राय थी कि कोई खास बात नहीं है। दवाएं लिखदी है। हो जाएगा । एक के बाद एक चिकि त्सक बदलता रहा। तभी किसी ने सलाह दी, गांव मेंे ठीक से ईलाज संभव नहीं है। इसे जयपुर के सवाई मानसिंग अस्पताल के चरक भवन मेंे दिखा आए। वहां के ईएनटी सर्जन ने कहा कि बायप्सी करवानी होगी। इसके बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।
उफ यह सड.ी सी रिपोर्ट ...जिसका संदेह था। गले का कैंसर। स्टेज दो बताया गया है। शुरू में तो इसका आभास ही नहीं हुआ। बस दाया गाल फूला- फूला सा लगता था। फिर कैंसर...। रहमत भाई ने जब सुना तो उसका होंशला टूट गया। एसएमएस के चिकित्सक ने फिर से चैकअप किया। रेडियो थ्ोरेपी के बाइस सेक लिख दिए । चार- पांंच सेक तक सहता रहा। हिम्मत जुटाता रहा। मगर इसके बाद रेडियो थ्ोरेपी की गर्मी ने उसे झुलसा सा दिया था। फिर थ्ौरेपी गर्म बहुत होती है। हर कोई इसे बर्दास्त नहीं कर सकता। खान साहब की हालत बड.ी दुखदाई हो गई। थ्ोरेपी के चलते मुंह में, सफेद रंग के बड.े- बड.े छाले हो गए ।
जीभ के उपर वाले हिससे में और नीचे गले तक। हालत... इतनी खराब हो चुकी थी कि पानी तक नहींे पी सकता है। एक घूंट पानी पीने में ही काफी वक्त लग जाता है । चिकित्सकोंे की सलाह है कि चाहे जो खिलाओ। उनकी ओर से कोई रोक नहीं है। सवाल उठता है, कैसे...। एक घूंट ज्यूस पीने का मन करता है, मगर गले के नीचे नहीं उतर पाता है। रहमत भाई की हालत गिरती जा रही है। चेहरा की चमड.ी काली पड. गई है। गाल चिपक गए है। शरीर में कमजौरी अधिक आ गई है । ना सो सकता है, ना बैठ सकता है। चलना- फिरना तो पोसिबल ही नहीं है।
दर्द के मारे पूरी रात रोता रहता है। बार- बार यही क हता है। मुझे नहीं करवानी रेडियो थ्ौरेपी। इसके नाम से ही नफरत सी हो गया है। दुखी मन से उसने थ्ोरेपी करवाने तक से मना कर दिया। रेडियो थ्ोरेपी के बाद कीमो शुरू की जानी है। वह तो और भी पीड.ादायक है । मर जाऊंगा...। यही लिखा है, शायद। डॉक्टरोंे ने काउंसलिंग की। समझाने का प्रयास किया ...रहमत भई ठीक हो जाओगे । मगर इलाज तो पूरा लेना होगा। रहमत भाई से मुलाकात एक सप्ताह तक, प्राय:कर रोज ही हो जाया करती है। मगर अभी हाल...। कहीं दूर दूर तक दिखाई नहीं दिया। फुटपाथी दोस्त कहते थ्ो। ईद मनाने गांव गया है। हंसी-खुशी का त्यौहार है। इसे टालना क्या अच्छा लगेगा।