J.K. Lawn Hospital में मासूम बच्ची को ईलाज का इंतजार

Samachar Jagat | Thursday, 21 Jul 2022 11:52:27 AM
JK Innocent girl waiting for treatment in Lawn Hospital

जयपुर। प्रदेश के सबसे बड़े बच्चों के जे.के.लॉन अस्पताल की छवि लोगों के बीच काफी अच्छी रही है। पेसेंट गरीब हो या फिर अमीर, सभी को समान रूप से उपचार दिया जा रहा है। मगर कभी कदास चूक भी हो जाती है। ऐसा ही एक केस इन दिनों बड़ा ही दर्दनाक बना हुआ है। वाकिए के मुताबिक भरतपुर के सतवाड़ी गांव का सत्त्तर साल का बूढा श्रमिक अपनी बीमार पौती के उपचार के लिए वहां आया हुआ है। पिछले तीन दिनों से वह बदहाली की हालत में खुले मैदान में दिखाई दे रही है। कहने को बच्ची का मामला अस्पताल की चिकित्सकोंं तक जा पहुंचा है। मगर व्यस्त का कारण बता कर उसके ऑपरेशन की कार्रवाही शुरू नहीं हो पा रही है।

श्योद्दीन नामक यह फटेहाल सख्स बताता है कि उसका बेटा खुली मजदूरी करने के चलते अपनी बेटी के उपचार करवाने को जयपुर नहीं आ सका है। मगर उसकी दादी और मां उसके साथ है। सूत्र कहते हैं कि साजिदा नाम की यह बच्ची तीन दिन पहले जयपुर आ गई थी। पहली बाधा इस बात की आ गई थी कि परिजनोंे के पास जनाधार कार्ड नहीं था। मगर बाद में फैक्स के जरिए क ार्ड की ऑन लाइन कॉपी मंगवाली । पीड़ित पक्ष अनपढ होने पर वह जनाधिकार और आधार कार्ड में फर्क नहीं करपाया। दोपहर के समय वह जब अस्पताल के आउटडोर में अपने पौते को लेकर पहुंचा तो वहां मौजूद स्टाफ ने उन्हें टोका। कहा गया कि हमें जनाधिकार कार्ड की आवश्यकता है। आधार कार्ड की नहीं। वर्तमान मंे जो व्यवस्था प्रचािलत है, उसके मुताबिक मरीज को निशुल्क उपचार की सुविधा का लाभ जनाधिकार के बिना संभव नहीं है। अस्पताल में कार्ड दिखाने के बाद उसक ा अकाउंट वहां खोल दिया जाएगा। उपचार के दौरान होने वाले तमाम खर्च की एंट्री होती रहेगी। सरकार को पूरा हिसाब बताना होता है।

बच्ची के दादा बताते हैं कि उनका जनाधिकार कार्ड भरतपुर स्थित उनके घर पर ही रह गया है। गुरूवार तक उसे यहां मंगवा लिया जाएगा। इसी बीच बच्ची को छाले होने की भी बीमारी थी। उसके लिए आवश्यक दवाएं अस्पताल की ओर से निशुल्क दे दी गई। मगर मूल रोग ब्रेन में पानी भर जाने का था। जिसका ऑपरेशन किया जाना था। मगर आवश्यक कागजी कार्रवाही के चलते बच्ची के उपचार में विलंब हो रहा था। वृद्ध दादा बताता है कि साजिदा के उपचार में काफी पैसा लग चुका है। इसके पीछे उनकी हालत क ंगाली की सी हो गई है। यहां जे.के.लॉन अस्पताल में शहर के समाजसेवियों की भोजन की चार गाड़िया नियमित रूप से आ रही है। यह खर्च बेशक कम हो गया हो, मगर और भी खर्च आए दिन उठाने पड़ते है। नित्यकर्म के लिए भी पैसे देने पड़ते हैं।

श्योद्दीन पर नजर डालने पर इस बात का अहसास हर किसी को हो सकता है। उसके बदन की चमड़ी बदलते मौसम के चलते काली पड़ गई है। इसके साथ ही दरारें पड़ जाने पर जगह- जगह से खून बहने लगा है। बच्ची का दादा खुद बीमार है। कूल्हे की हड्डी डिसलोकेट हो जाने पर उसका भी ऑपरेशन ड्यू चल रहा है। वृद्ध की हालत वाकई परेशान करने लायक हो गई है। कमजोर टांगों के चलते उसका बदन कांपता रहता है। पांव लड़खड़ाने के चलते कई बार तो वह गिर भी जाने पर शरीर में इसके घाव के निशान बन गए हँै।  दुबला पतला, नंगा बदन और चेहरे पर बढी दूधिया दाढी उसकी मजबूरियो ं का अहसास करवाती है। वह ज्यादा बोलने की स्थिति में नहीं है। बात बात पर रो पड़ता है। दादा श्योद्दीन बताता हैं कि उसकी पौती आलिया जब पैदा हुई तब एक दम सही थी शरीर के वजन के साथ- साथ श्वांस से संबंधित कोई समस्या नहीं थी। ऐसे में यह केस सामान्य मान कर, मां- बेटी को अस्पताल के जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया था। दो दिनों तक वहां कुछ जांचे करके उन्हें अस्पताल से छुटटी देदी गई थी।
वृद्ध दादा का कहना यह भी है कि बच्ची को घर ले जाने के बाद दो- तीन दिनों तक वह समान्य रही।

मगर बाद मेंं उसे तेज बुखार की शिकायत हो गई थी। ऐसे में परिजन उसे लेकर भरतपुर के सरकारी अस्पताल में ईलाज के लिए ले कर गए थ्ो, मगर तरह-तरह की जांच के बाद यह केस सीरियस बता कर उसे जयपुर के जे.के.लॉन अस्पताल रेफर कर दिया था, तभी से कोई एक सप्ताह से यहां जे.के.लॉन अस्पताल के बाहर रह रही है। सूत्र यह भी कहते हैं कि जयपुर पहुंचने पर आलिया को वहां की आपात चिकित्सा इकाई में दिखाया था। जहां के चिकित्सक ने केस सीरियस जानकर उसे तुरंत ही आउटडोर में दिखाने को कहा । मगर अस्पताल की हाल की व्यवस्थाओं के चलते बच्ची का फुटबाल की तरह, इधर से ऊधर भटकना पड़ रहा है। गत बुधवार के दिन शहर में रात के समय एकाएक तेज बरसात होने पर यह परिवार बीमार बच्ची के साथ छत के इंतजार मेंं भटकता रहा।  बच्ची क ा इलाज मुफ्त होने के अलावा अटेनेंटोें के सामने परेशानी यह हो गई कि वहां नित्यकर्म के लिए बीस रूपए प्रति केस जमा करवाने पड़ते है। बात ·ान करने की थी, इसके लिए भी उनके पास पैसा नहीं है। इन हालातांे में पीड़ित परिवार का कष्ट बढता ही जा रहा है।



 

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