गरीब विधवा महिला के संघर्ष की कहानी

Samachar Jagat | Wednesday, 07 Jun 2023 09:51:56 AM
Story of struggle of poor widow woman

जयपुर। मधेपुर शहर के जिला अस्पताल का सीन है। वहां के मेडिकल वार्ड में शोर गुल का माहौल है। कोई दो दर्जन लोगों की भीड़ इस वार्ड के बाहर मौजूद थी। भीड़ भाड़ को कंट्रोल करने के लिए दो सुरक्षा गार्डों ड्यूटी पर है। कोई कहता है कि कोई चालीस साल के पेसेंट की मौत हुई है। कोई तीन दिन पहले ही उसे उपचार के लिए लाया गया था।

तब भी वह सीरियस लगता था। पेसेंट के स्ट्रेचर के संग एक महिला भी चल रही थी, और दो मासूम बच्चे बेहाल हालत में। नंगे पांव और पुरानी कमीज पहने हुए। भूरे रंग के उलझे हुए बाल। चेहरे की चमड़ी रूखी है। यहीं hoto से निकले थूक की सुखी धार ...। एक ही नजर में अपनी बेबसी जाहिर कर रही है। पेसेंट का नाम बिरेंद्र दास बताया जा रहा है। साथ आई एटेनेंट सिमादेवी की उम्र तीस साल से अधिक नहीं लगरही थी।

रोगी ऑक्सीजन पर था। इसके बाद भी मॉनिटर पर शुभ संकेत नहीं मिल रहे थे। वार्ड के चिकित्सक खुद परेशान दिखाई दे रहे थे। इन्ही में एक। सीनियर सा लगता था। बार बार मैसेज दिया जा रहा था। पेसेंट को वेंटिलेटर की आवश्यकता है। वैसे गुब्बारा नुमा यंत्र से  कृत्रिम सांस दी जा रही थी। मगर इससे ठीक से मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही थी। रोगी की जान बचाने को आईसीयू में बेड चाहिए था। इसी का इंतजार चल रहा है।

तभी वार्ड ब्वाय की शक्ल दिखाई दी। तेज कदमों से चलने पर,उसकी सांस फूल रही थी। छोटे डॉक्टर ने ईसरा किया। वह बोला... क्या हुवा? बताता क्यू नही। बिना मतलब देरी हो रही है। बात ही कुछ ऐसी थी। वह बोला की अभी अभी कोई पेसेंट मरा है। उसी की मशीन लगेगी। मैं समझी नहीं। मन ही मन सोचती रही। मेरा खसम मानता नहीं है। दिन भर दारू चहिए। पांच साल की बेटी और सात साल के बेटे को पढ़ना पड़ता है। फिर रसोई का खर्च भी कम नहीं है। मगर नही माना।

तभी पता चला, कॉलोनी की दुकानों के बाहर पड़ा है। ज्यादा पीली है। हॉस्पिटल लाई तब तक वह बेहोश था। डॉक्टर से बात की,वह भी नाराज था।कहता था,जहरीली शराब पी है। जहर फैल चुका है। कौशिश कर रहे है। अच्छी से अच्छी दवाएं दे रहे है। इसके बाद भी कुछ नहीं कह सकते। जो भी होगा,उसका नसीब। कुछ भी हो सकता है। सतत जीविका योजना में असमर्थ और गरीब महिलाओं की मदद की जा रही है। कौसी क्षेत्र में बदलाव आया है।

मधेपुरा में 4125, सहरसा में 5087 और सुओल की 3139 महिलाओं का बैंक खाता खुलवाया है। सभी को खुद के रोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है। जीविका योजना की निदेशक  अनुजा कहती है कि यहां की महिलाओं ने कमाल दिखाया है। यह साबित किया है की वे मेहनत करके आगे बढ़ सकती है। किसी को चोटी सी किराने की दुकान खुलवाई है। किसी को बकरी खरीद कर दी है। दो महिलाएं घोड़ा गाड़ी चलाती है। सबसे अच्छी बात यह देखने को मिली है कि शराब से तबाह परिवार में अब सुबह शाम खाना बनने लगा है। बच्चों को पीने की दूध मिलता है। कमाई का पूरा पैसा घर की खुशहाली के काम आता है। जो पैसा दारू में लगता था,अब वहां का माहौल में फर्क पड़ा है।



 


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