बहुत कम लोगों को पता है के बिलकुल सरल सा दिखने वाला और आसानी से सभी जगह उपलब्ध बबूल के इस प्रयोग को तीन महीने करने से धातु कमजोरी नष्ट होकर, धातु पुष्ट होती है, शीघ्रपतन नष्ट हो कर स्तम्भन शक्ति बढती है। शुक्राणुओं में वृद्धि होती है। आइए, जानें इस प्रयोग को करने की विधि...
जरुरी सामग्री
बबूल की कच्ची फलियाँ (जिनमे अभी बीज ना आये हों.)
बबूल के कोमल ताज़े पत्ते
बबूल की गोंद (यह अगर वृक्ष से ना मिले तो यह पंसारी से मिल जाएगी।)
उपरोक्त सामग्री बराबर मात्रा में ले लीजिए।
बनाने की विधि...
शीघ्रपतन दूर करने के लिए बिना बीज वाली बबूल कि कच्ची फलियाँ, बबूल की कोमल पत्तियां और बबूल की गोंद तीनो को समभाग (बराबर मात्रा) में लेकर सुखा लीजिए। सूखने पर कूट पीसकर कपड छान कर लें। अभी इसके बराबर वजन की मिश्री मिला लें और दोबारा तीन बार कपड छान कर लीजिए। अभी इस चूर्ण को कांच की शीशी में भर कर उपयोग के लिए रख लीजिए। रोज़ सुबह और रात में सोते समय एक एक खाने का चम्मच गर्म दूध के साथ तीन महीने तक सेवन करें।
मूत्र विकार में
पेशाब की रुकावट और जलन को ठीक करने के लिए बबूल की गोंद को पानी में घोलकर पीना चाहिए, बबूल कि कच्ची फलियाँ छाया में सुखाकर देशी घी में तल कर उनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शक्कर के साथ 10 ग्राम मात्रा में सुबह शाम लेने से भी मूत्र विकार सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते हैं। बबूल की गोंद कि 2 से 3 ग्राम मात्रा को 150 मिली जल में घोलकर एक बार लें।
बबूल परिचय
बबूल जिसको कीकर, किक्कर, बाबला, बामूल आदि नामो से जाना जाता है। इसका पेड़ कांटेदार, बड़े या छोटे रूप में पुरे देश में सभी गाँवों शहरो में आसानी से मिल जाता है। इसके तीन भेद है – तेलिया बबूल, कोडिया बबूल और राम काँटा बबूल। इनमे से तेलिया बबूल मध्य आकार का होता है। कोडिया बबूल का वृक्ष मोटा व् छाल रूखी होती है। यह विदर्भ व् खानदेश में होता है। राम काँटा बबूल कि शाखाएं ऊपर उठी हुई और झाड़ू कि तरह होती हैं। यह पंजाब राजस्थान व् दक्षिण में पाया जाता है।