इंटरनेट डेस्क। ताउम्र वो अपना बेकसूर होने का हवाला देता रहा लेकिन जीते जी उसे न्याय नहीं मिला। आखिरकार मरने के 21 महीनों बाद उसे बेकसूर ठहराया गया। लेकिन कोर्ट के ऐसे फैसले का क्या करें जो जीते जी जिस शख्स को बेगुनाह साबित नहीं कर पाया और उसकी मौत के बाद उसकी बेकसूरी पर कोर्ट की कार्यवाही की गई है। ये मामला है छत्तीसगढ़ का जहां भ्रष्टाचार के एक मामले में एक युवक न्याय के लिए ताउम्र लड़ता रहा लेकिन फैसला उसके पक्ष में उसकी मौत के बाद आया। बताया जाता है कि पिछले 18 साल से इस मामले में सुनवाई चल रही थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में शिव प्रसाद नामक शख्स 1999 में दुर्ग में फॉरेस्ट बिड गार्ड के पद पर तैनात था। लकड़ी चोरी की सूचना पर उसने लकड़ी जब्त कर ली थी लेकिन आरोपियों ने उसके खिलाफ ही हजार रूपये की झूठी रिश्वत मांगने के आरोप में एफआईआर दर्ज करवा दी। जिसे बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत शिव प्रसाद को झूठे मामले में सजा सुनाई गई थी।
2003 से कोर्ट की लगातार चल रही कार्यवाहियों के बीच 2019 में उस शख्स की मौत हो जाती है। लेकिन उसे न्याय उसकी मौत के 21 महीनों बाद जाकर मिलता है। जीते जीत उस शख्स की ईमानदारी पर लोगों ने शक किया। उसे भ्रष्ट बताया लेकिन आखिरकार मौत के बाद ही सही लेकिन उस पर लगा भ्रष्टाचार का दाग तो धुल ही गया। बस वो शख्स नहीं था जिसपर पर ये दाग लगा था।