देश के सूखा ग्रस्त क्षेत्रों में भूजल स्तर बढ़ाने के लिए लातूर के प्रयोग को अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है। महाराष्ट्र के लातूर में दो सालों में में जन भागीदारी से भूजल स्तर में काफी बढ़ोतरी दर्ज की गई है और उसमें सरकार को कोई विशेष खर्च भी नहीं करना पड़ा है। वर्षा जल के पुनर्भंडारण के इस प्रयोग से सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड समेत देश के कई क्षेत्रों को लाभ मिल सकता है।
जल संसाधन मंत्रालय लातूर के इस प्रयोग से प्रभावित है और वह इसके लिए राज्यों को प्रेरित करेगा। महाराष्ट्र सरकार के श्रम व कौशल विकास मंत्री व लातूर के प्रभारी मंत्री संभाजी पाटिल निलंगेकर ने इस बारे में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात भी की है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सरकार देश में बढ़ते जल संकट व बाढ़ और सूखे की समस्या से निपटने के लिए जल भंडारों को सहजने के साथ पुनर्भंडारण पर विशेष जोर दे रही है।
इसके लिए सरकार योजना बनाने के बजाए जागरूकता पर जोर देगी। जिसमें कम खर्च में ज्यादा लाभ मिल सकेगा। इससे पहले जल संसाधन मंत्रालय ने पंजाब के सीचेवाल में नदी बचाने के सफल अभियान पर काम करने के साथ उसे अन्य राज्यों तक पहुंचाया था। लातूर मॉडल के बारे में बताया गया है कि लातूर के मकानों में वर्षा जल संचयन के लिए छतों से नीचे तक पाइप लगाकर पानी को अवशोषित करने वाले गड्डे बनाए गए। गांव के बाहर भी नहर जैसी संरचना बनाई गई, जिसमें बारिश का पानी जमा हुआ।
इसमें भी जगह-जगह पर जल अवशोषित करने वाले रेत, कोयला व पत्थर वाले गड्डे बनाए गए। जिससे पानी जमीन के अंदर गया। जितने भी छोटे-बड़े तालाब पोखर थे। उनकी गाद साफ कराई गई। इससे वर्षा जल सतह पर व जमीन के भीतर संचालित किया गया। 2016 में भूजल स्तर 1000 फुट नीचे चला गया था। वह अब 70-80 फुट आ गया है। यहां यह बता दें कि साल 2016 में मुंबई से पानी लेकर लातूर पहुंची टे्रन की खबर देश और दुनिया में चर्चित हुई थी। जलदूत नाम की इस एक्सप्रेस ने सौ से ज्यादा फेरे लगाए थे।
इसे देखते हुए लातूर जिले के प्रभारी मंत्री संभाजी पाटिल निलंगेकर ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर जल संकट को दूर करने का फैसला किया। पाटिल ने कहा कि सरकारी सहयोग के नाम पर मनरेगा के तहत गड्डे आदि खुदवाए गए। बाकी खर्च स्थानीय संगठनों व लोगों ने खुद किया गया। उन्होंने जन जागरण अभियान चलाया और क्षेत्र ेमें गन्ना फसल को हतोत्साहित किया। महाराष्ट्र के लातूर में भूजल का स्तर में जिस प्रकार सुधार हुआ है और भूजल स्तर जो 1000 फुट नीचे चला गया था वह अब 70-80 फुट पर आ गया है। राजस्थान में भी वर्षा जल संचय का कार्यक्रम मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान के रूप में चलाया जा रहा है।
इस अभियान में राजस्थान में परंपरागत रूप से वर्षा जल संचयन को तालाब, बावड़ी, जोहड़ों का जीर्णोद्धार जन सहयोग से कराया गया। इस अभियान की नीति आयोग ने भी सराहना की है और अन्य राज्यों के लिए इसे प्रेरणा देने वाला बताया है। इस अभियान के प्रथम चरण के उत्साहजनक परिणामों को देखते हुए नगरीय क्षेत्रों में अभियान द्वितीय चरण में राज्य के समस्त 191 शहरों को शामिल किया गया है, जिसमें 1 हजार 766 कार्यों पर 120 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।
ग्रामीण क्षेत्र में अभियान के दो चरणों की अभूतपूर्व सफलता से प्रेरित होकर तृतीय चरण में 4 हजार 240 गांवों में एक लाख 40 हजार कार्य करवाए जाएंगे। वर्षा जल संचयन के लिए जहां महाराष्ट्र की लातूर योजना का मॉडल अन्य राज्यों को भी अपनाने को कहा जा रहा है। उसी तरह राजस्थान का मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान को अन्य राज्यों में भी अपनाने के लिए नीति आयोग ने लिखा है और अभियान की सराहना करते हुए पुरस्कृत भी किया है।