हिमाचल की बिनवा नदी के किनारे पर बैजनाथ धाम बसा हुआ है। यहां पर एक शिवमंदिर स्थित है और इसके बारे में पुराणों में एक बहुत ही रौचक कहानी का वर्णन किया गया है या ये कहें कि पुराणों में इस मंदिर की एतिहासिकता के बारे में जानकारी दी गई है। आइए आपको बताते हैं इस मंदिर की कथा के बारे में.....
पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और इसके बाद भी जब भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए तो रावण ने एक-एक कर अपने शिश काटकर हवन कुंड में आहुति देकर भगवान शिव को अर्पित करना शुरू कर दिया।
इस सफ़ेद शिवलिंग में हैं 1001 छेद, पूजा करने से होती है हर मनोकामना पूरी
जब वह अपने दसवें शीश की आहुति देने लगा तब भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने रावण के सभी सिर वापस कर दिए, इसी कारण से रावण के इस सिर थे। भोलेनाथ ने रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने कहा कि वह शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता है।
भोलेनाथ ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह रावण को देने से पूर्व कहा कि इन्हें जमीन पर न रखें। लंका जाते हुए गौकर्ण क्षेत्र में पहुंचने पर रावण को लघुशंका लगी। वहां एक बैजु नाम का ग्वाला था। रावण ने उसे शिवलिंग पकड़ कर सारी बात समझा दी और स्वयं चला गया।
भोलेनाथ की माया से बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक समय तक न सह सका और उसने उन्हें जमीन पर रख दिया और स्वयं पशु चराने चला गया। जिसके पश्चात दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। दोनों शिवलिंग जिस मंजूषा में थे उसके सामने जो शिवलिंग था, वह चन्द्रभाल और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आज भी इस शिव मंदिर में पूजा करते हैं अश्वत्थामा
यहां दशहरे पर रावण का दहन नहीं किया जाता, अपितु भोलेनाथ के साथ उनके परम भक्त रावण को पूजा जाता है। यहां मुख्य मंदिर के अतिरिक्त और भी छोटे-छोटे मंदिर हैं। जिनमें भगवान गणेश, मां दुर्गा, राधा-कृष्ण व भैरव बाबा की प्रतिमाएं विराजमान हैं।
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