गुप्त नवरात्र में प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है। यह समय शाक्य एवं शैव धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त माना जाता है। सतयुग में चैत्र नवरात्र, त्रेता में आषाढ़ नवरात्र, द्वापर में माघ और कलयुग में आश्विन नवरात्र की पूजा का विशेष महत्व होता है। गुप्त नवरात्र की शुरुआत कैसे हुई, पुराणों में इसकी कथा वर्णित है, आइए आपको बताते हैं इसके बारे में.....
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शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में दैत्य राक्षस दुर्ग ने ब्रह्मा को तप से प्रसन्न करके चारों वेद प्राप्त कर लिए तब वह उपद्रव करने लगा।
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वेदों के नष्ट हो जाने से देव-ब्राह्मण पथ भ्रष्ट हो गए, जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही। देवताओं ने मां दुर्गा की शरण में जाकर दुर्ग का वध करने का निवेदन किया, मां ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध किया। दस महाविद्याओं की साधना के लिए तभी से 'गुप्त नवरात्र’ मनाया जाने लगा।
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