भूखी प्रसूता को अपने हिस्से का घरेलु भोजन करवाया, डिलीवरी के समय उसकी पूरी संभाल की
जयपुर। एक ओर देष के अनेक षहरों में सांप्रदायिकता की आग लगी पड.ी है, मगर इसके बीच के वाकिए देखने को मिल रहे हैं, मगर इसके बाद भी यहां के सांगानेरी गेट स्थित महिला चिकित्सालय में देखने का मिला है। घटना बताई जा रही है कि दूदू के निकट ढाणी में रह रही एक गर्भवती महिला डिलीवरी के लिए दूूदू के एक अस्पताल गई थी, सोनोग्राफी में जब इस महिला के गर्भ में जुड.वा बच्चे होने की जानकारी मिली तो इस केस को जयपुर के लिए रेफर कर दिया। कांता के साथ आए उसके पति और देवर ने बताया कि कांता को जब दूदू के एक निजी अस्पताल डिलीवरी के लिए ले जाया गया तो, दो दिनों में ही बीस हजार रूपए का बिल बना दिया। यह पैसा लोगोंे से उधारी में लेकर उतारा और जयपुर के लिए रवाना हो गई।
जयपुर में कोई रिष्तेदार- जानकार ना होने पर उसने चार दिन का समय वहां के फुटपाथ पर ही किसी तरह गुजारा। गत रविवार के दिन सायं के समय उसकी हालत इस कदर खराब हो गई कि दो वक्त की रोटी उसे नहीं मिली। भूखी रह कर किसी तरह अपने गर्भस्थ षिषु को पालती रही। इसी रात कोई आठ बजे एक ओर गरीब परिवार का पेसेंट सांगानेरी गेट महिला चिकित्सालय लाया गया था। किसी बात के चलते उसे भी वहां एडमिट नहीं किया गया। मारे मजबूरी के उसे भी अस्पताल प्रांगण के फुटपाथ पर रहना पड. गया। इसी दौरान कांता की परेषानी का पता चला तो उसने घर से लाया गया भोजन का टिफन कांता को दे दिया। पीडि.ता ने अनेक बार मना किया, मगर वह कहती रही कि रोटी पर किसी धर्म या स्थान का नाम नहीं लिखा होता। रहा सवाल धर्म का।
हमारी और आपकी पूजा की विधि जरा अलग हट कर है। मगर सर्वषक्तिवान एक ही है;। मेरी तरह आप का भी इस पर हक है।
साजिदा ने बताया ि कवह जब अपने घर से रवाना हुई थी तो लाख मना करने पर भी देषी घी में बने चार पराठे पैक कर दिए थे। मुझे खुषी होगी कि आप इसका सेवन करें। अन्यथा ये खराब हो जाने हैं। साजिदा का व्यवहार देखकर वहां मौजूद अन्य महिलाएं भी प्रभावित हुए बिना नहीं रही। सभी ने एकजुट होकर कांता की भोजन और चाय- दूध की व्यवस्था की। जनाना अस्पताल के बाहर वाले गेट के निकट बैठा बगरू निवासी हेत रात बताने लगा कि Êिदु- मस्लिम कुछेक स्वार्थी लोगों के टोटके है। आम जनता का इससे कोई लेना नहीं है। अस्पताल चाहे सरकारी हो या फिर प्राईवेट जातिगत भेदभाव कही भी देखने को मिलेगा। सच तो यह भी है कि मरीजों और उनके अटेनेंटोें के आपसी सहयोग के चलते वे बड.ी से बड.ी समस्या को हल कर लेते हैं।
साजिदा के संग आई अस्सी वर्पीय वृद्घा आला ने कहा कि साजिदा की तरह कांता भी मेरी बेटी की तरह है। दोनोंं की संंभाल की जिम्मेदारी मुझ पर आती है। डॉक्टरनियां कहती है कि जब तक दर्द नहीं उठते उन्हेंे वहां भर्ती किया जाना संभव नहीं है। मगर जब डिलीवरी की स्टेज आती है तो उनके व्यवहार और संभाल में किसी तरह की षिकायत देखने को नहीं मिलती है। जनाना अस्पताल में सभी जरूरी दवाएं सरकार की ओर से निषुल्क दी जा रही है। एक समस्या खासकर परेषान करती है कि वहां पेसेंटोंे के विश्राम और षीतल जल की व्यवस्था नहीं है। अस्पताल की चार दीवारी के बाहर पहले फुटपाथी ढाबे चला करते थे, मगर अतिक्रमण का नाम देकर उन्हें वहां से हटा दिया गया है। इसकी वैकल्पिक व्यवस्था के लिए प्रषासनको अनेक बार कहा गया, मगर उनकी सुनवाई नहींे की जा रही है।