जयपुर। डेंगू रोग ने शहरवासियों की हालत खराब की हुई है। यहां के सवाई मानसिंह अस्पताल और जे.के.लॉन के साथ- साथ गणगौरी बाजार सरकारी अस्पतालों में इन पेसेंटों की संख्या लगातार बढती जा रही है। परेशानी यह है कि यहां के प्रशासन जिसमें नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग मुख्य है। उनकी ओर से समूचित प्रयास को लेकर लोगों से काफी शिकायतें मिल रही है, आउटडोर के अलावा इनडोर वार्ड में भी डेंगू बुखार के रोगी भरे पड़े हैं।
साधनों की संख्या कम पड़ रही है। अस्पताल के मैडिकल युनिट तीन में बीमार बच्चों को बरामदे में लिटाया गया है। बात यही तक सीमित नहीं है। बैड कम पड़ने पर खतरे की बात यह है कि एक बिस्तर पर तीन - तीन बच्चों को लिटाया गया है। यहीं ग्यारह नम्बर बैड़ के निकट बैंच पर कोई पच्चीस - तीस साल की महिला बैठी है। बैड पर जगह ना होने पर बीमार बच्चे को गोद में लिए हुए है। डेंगू के शिकार बच्चों में एक प्रिंस नामक बालक का फीवर काफी तेज है। पूरा बदन तप रहा है। गाल लाल हो गए हैं। प्रिंस के निकट ही दो साल का बच्चा लालू के बुखार ज्यादा है। बच्चे की मां बताती है कि फीवर तेज होने पर बच्चे को दौरे भी पड़ने लगे हैं। बच्चे को गोद में लिए एक सख्स जो कि रींगस के हैं, इनकी गोद वाला बच्चा बार- बार उल्टियां कर रहा है। समस्या यह है कि यहां वार्ड में चिकित्सक और पैरामैडिकल स्टाफ की संख्या कम है। बच्चे की परेशानी जब भीइन्हें बताई जाती है, झुंझला जाते हैं। बहुत सी बार तो अटेनेन्ट से भिड़ जाते हैं। गर्मा- गर्म बहस शुरू हो जाती है।
अफ सोस इस बात का है कि मरीज और इनका उपचार कर रहे स्टाफ दोनों की परेशानियों को सुनने वाला कोई भी नहीं है। इनडोर वार्ड के बाहर गार्ड मौजूद रहते हैं। मगर इनका मिजाज हर वक्त गर्म रहता है। बड़ी मूंछ वाला कर्मी अक्सर गर्मा रहता है। कहता है कि गुस्सा मत दिलाओ मुझ्। पुलिस को बुला लूंगा। केस दर्ज करवा दूंगा। अजीब है। बात- बात पर पुलिस की धमकी। मानोंं पुलिस उनके बाप जी की है। नेफरोलॉजी वार्ड में बीमार बच्चां की संख्या कत है। चिकित्सको की हाड़ताल के चलते काफी पेसेंटो को घर के लिए रवाना कर दिया है। दो बच्चों का डायलेसिस होना है। मगर, समझ के बाहर ये है कि स्टफ की कमी के चलते वहां कुछ भी सही नहीं हैं। एसएमएस अस्पताल की ट्रोमा इकाई की इमारत के ठीक पीछे, नेफरोलॉजी यूरोलॉजी और गेस्ट्रोलोजी के वार्ड हैं। गलब की सफाई है। ताज्जुब की बात यह है कि वहां कार्यरत सुरक्षा गार्ड का व्यवहार कमाल का है।
हर सख्स से तमीज से बात करते है। हर वक्त मदद के लिए तत्पर रहते हैं। इनडोर वार्ड में मरीजों की संख्या अधिक होने पर उनकी देखभाल और उपचार की व्यवस्था को चुस्त रखने के लिए वहां के सीनियर चिकित्सक खुद मैदान में है। जो काम अक्सर नसिर्ंग स्टाफ किया करता है, वे खुद इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। टोमा इकाई की ओर चलो चलते हैं। एक्सीडेंट के केसेज अधिक आ रहे हैं। वहां के सुरक्षागार्डो का व्यवहार भी ठीक बताया जा रहा है। सिंधी कॉलोनी से आई महिला का दिमाग भन्नाया हुआ ही रहता है। बात - बात में झगड़ा। हर किसी को धमकी। भाजपा की वर्कर हूं समझे ना। एक दिन में छुटटी करवा दूंगी। मेरे से पंगा लेने की जरूरत नहीं है। यहीं ग्राउंड फ्लोर पर स्थित वार्ड का नसिर्ंग स्टाफ ओवर एक्टिव रहता है। कभी मरीज के साथ भिडंत। तो कभी उनके अटेनेंटों से दो- दो हाथ। मन चाहे जिसे धमकाना। वार्ड के बाहर धकियाना। बहुत सी बार तो उनका पूरा इंटरव्यू लेना तक नहीं चूकते हैं। वार्ड में काम कर रही नर्स से भी शिकायतें मिल रही है।
किससे करें शिकायत। आनंद पुरी से आए सख्स बाबू लाल सैनी कहते हैं, हमारी मजबूरी है साहब। वरना व्यवहार में सुधार करना भी हमें आता है।
एसएमएस के मुख्य भवन में इमरजैंसी इकाई के गेट के बाहर का मामला है। रात कोई दस बजे कोई सीरियस केस आया था। मरीज को प्रवेश देने के बाद, अटेनेंट को रोका गया। यह काम शालीनता से भी किया जा सकता था। मगर गजब, पुरूष सुरक्षा गार्डो ने महिला परिजनों के साथ ही धक्कामुक्की करली। बड़ा हंगामा हुआ। अनेक लोग मरीज का पक्ष ले रहे थ् तो गार्ड साहब भी आधा दर्जन साथियों को लेकर वहां आ गए। पुलिस बुलाली गई। दुखी अटेनेंटों को जेल में बंद करने की धमकी दी गई। कहा गया कि तुम्हारे के खिलाफ तो एफआईआर लिखवानी होगी। जानते नहीं है। एक्स फौजी हैं हम। पाकिस्तानी बार्डर पें डूटी दे चुके हैं। आप जैसों को सुधारना जानते हैं। चल भाग यहां से। नहीं गया तो...। मूंछ मरोड कर। हाथ के इशारे से बार- बार धमकाए जा रहा है।
इनकी तुलना में चिकित्सकों के व्यवहार में कोई कमी या शिकायत नहीं हैं। आटे में नमक तो चल सकता है। मगर पूरी व्यवस्था में सुधार आना चाहिए। इस बात से जूनियर चिकित्सक सहमत हैं। उनकी भी अपनी मांगे हैं। परेशानियां है। कोरोना काल में तो जान जोखिम में भी रोगियो कीसेवा की थी। इस बात पर ईनाम तो दूर। सीनियर प्रशासक गुर्राते हैं.. यही कि किस बात का ईनाम डॉक्टर साहब। आपने तो अपनी डूटी की है। अहसान थोड़ ही किया है। एक सीनियर चिकित्सक से जब संपर्क हुआ तो उनके तर्क वाकिए दमदार थ्। मरीजों की सेवा करना हमारा दायित्व है। मगर इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि गरीब हो या अमीर, सभी के उपचार का सारा खर्च सरकार उठा रही है। इसी में अटेनेंटों का सहयोग मिल जाए तो दिल गार्डन- गार्डन हो जाता है। रहा सवाल डेंगू का । इन रोगियों का उपचार बेहतर से बेहतर ढंग से चल रहा है। यदि कोई कमी दिखाई देती है तो, मिल बैठ कर। शांति से उसे हल किया जा सकता है।
रोगियों की बढती संख्या के हालातों के बीच एक बात सराहनीय कही जा सकती है। जयपुर की अनेक सेवा भावी संस्थाओं के अलावा समाज सेवी अपने स्तर पर इन पेसेंटो की मदद का प्रयास कर रहे है। इन संस्थानों में निवाला, आध्यात्मिक एवं धार्मिक संस्थान, मानसरोवर समाजसेवी संगठन, तेरहपंथी युवा संघ के अलावा शहर के जाने- माने बिल्डर सुरेन्द्र शर्मा अपने स्तर पर संसाधन जुटा कर इन रोगियों के अटेनेन्टों के लिए सुबह- सायं भोजन, दलिया, खिचड़ी आदि निशुल्क उपलब्ध करवा रहे हैं। भोजन सप्लाई के अलावा अनेक सेवा भावी लोगों में राजापार्क इलाके की एक मैडम खासकर चर्चा में है। रीना भाटियां नामक यह महिला जे.के.लॉन अस्पताल के इनडोर वार्ड में दिन मं एक बार राउण्ड करती है। जन सहयोग से रोगियों के लिए फल वितरित कर रही है।
रीना भाटिया की उम्र चालीस साल की है। इनके पति का राजापार्क बाजार में व्यवसाय है। वह खुद शिक्षित है। ·त्तकोत्तर होने के साथ- साथ बीएड की डिग्री ले चुकी है। कहने को मैडम के पास अनेक प्रस्ताव नौकरी के लिए आए थ्, मगर व्यस्त होने की स्थिति मं उसने जन सेवा को प्राथमिकता दी है। बीमार रोगियों की सेवा को लेकर रीना लोगों में काफी चर्चित हो गई है। रोगियों केसाथ संपर्क अपने आप में अनूठा है। उसका व्यवहार इस कदर मधुर है कि हर कोई इनसे मिलना चाहता है। मदद करने के प्रस्ताव भी दिए हैं, मगर उनकी पहली शर्त यही है कि उनका कार्य प्रचार के लिए नहीं है। जन सेवा में इसकी आवश्यकता भी महसूस नहीं की जाती है। रीना भाटिया से संपर्क गत रविवार को दोपहर के समय हुआ था। लाइट पीले रंग का सलवार सूट और ऊपर सफेद रंग की चुनरी। बालों का बड़ा जूड़ा बनाए रहती है।
लिपिस्टिक का उसे बड़ा शोक है। गहरे नीले रंग का विदेशी थला अक्सर अपने साथ रखती है। इसके अलावा इसके बैग में एक छोटी डायरी भी रखती है। जिसमें मरीजों की आवश्यकताओं को लेकर नोटिंग रखती है। सेविका पंजाब की होने पर उसकी भाषा में पंजाबी लुक महसूस होता है। रीना ने बताया कि जे.के.लॉन क मैडिकल इकाईयों में तीन नम्बर के वार्ड में डेंगू के पेसेंट भरे पड़े हुए हैं। दो- तीन माह के अलावा साल- दो साल के बच्चों की हालत इस कदर चिंता की है कि उनका बुखार कम होने का नाम नहीं ले रहा है। चौमूं से हरिनारायण की एक साल की पुत्री को कोई चार- पांच दिन पहले तेज बुखार हुआ था। मौसमी की बीमारी समझ कर उसका उपचार घर पर ही चलता रहा।
दवाओं के साथ- साथ अनेक माताओें ने झाड़ा- टोटका का सहारा लिया है। नीम हकीम की बात चलने पर, तपाक से बताती है कि यह समस्या शहर के अधिकांश कस्बों में देखने को मिल रही है। कई सारे पेसेंट समय रहते उपचार के लिए नहीं आ रहे है। अनावश्यक विलंब होने पर उनका उपचार बड़ा मुश्किल हो रहा है। रीना बताने लगी, इन बच्चो को एपल और मौसमी का फल,इन पेसेंटों में वितरित किया जा रहा है। रीना की सहेली मैडम कहती है कि उनके पास संसाधनों की कमी है। मारे मजबूरी के ना चाहते हुए भी पेसेंटों की ठीक से सेवा नहीं कर पा रहे हैं।
मैडिकल इकाई में भर्ती चार साल की बच्ची बताती है कि उसे बार- बार बुखार तेज और कम हो रहा है। बुखार तेज होने पर सिर चकराने लगा है। जगह पर जगह- जगह लाल धब्बे दिखाई देने पर बड़ी चिंता होती है, कहीं यह कोई खतरनाक स्किन डिजीज तो नहीं है। छ: साल की बच्ची सायरा घाटगेट इलाके से आई है। बच्ची की देखभाल के लिए उसकी बूढी दादी अस्पताल में दिन- रात मौजूद रहती है। रीना बताती है कि उसकी डायरी में डेंगू के हर मरीज की पूरी जानकारी रहती है। डेंगू से संघर्ष के मामले में समर्पित भावना से काम करने पर लोग उसे डेंगू मैडम के नाम से पुकारने लगते हैं। शुरू- शुरू में बुरा भी लगा। समझाया गया। मेरा नाम रीना है। इस नाम से मुझे पुकारा जा सकता है। मगर क्या करें। लोगों की जुबान पर डेंगू शब्द ने कब्जा जमाया हुआ है। फिर रहने दो। कहने दो। अपन को क्या फर्क पड़ता है।