खींचन बर्ड सेंचुरी में गूंजने लगा प्रवासी पक्षी 'कुरजां' का कलरव

Samachar Jagat | Wednesday, 05 Oct 2016 04:14:27 PM
migratory birds demoisel crane tweeting in khichan of phalodi

जयपुर। राजस्थान के जोधपुर जिले की फलौदी तहसील के खींचन गांव में इन दिनों संदेश के प्रतीक प्रवासी पक्षी कुरजां (डेमोइसेल क्रेन) का कलरव चरम सीमा पर है। 

साइबेरिया से अपने शीतकालीन प्रवास के लिए हर साल यहां आने वाले इन पक्षियों के समूह ने खींचन गांव में डेरा डालना शुरु कर दिया है। हालांकि ये मेहमान अगस्त के अंतिम सप्ताह में आने शुरु हो गये थे लेकिन उसके बाद सितम्बर माह के अंत तक इनकी संख्या में जोरदार इजाफा हुआ। 

कुरजां पक्षी की देखभाल और उन्हें दाना डालने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सेवाराम माली ने बताया कि इस बार अब तक करीब एक हजार कुरजां पक्षी खींचन गांव में चुके है और अब मौसम के बदलने के साथ उनकी संख्या भी बढ रही है। 

उन्होंने बताया कि ये मेहमान पक्षी जत्थे के रुप में आते है और अपने पडाव स्थल पर उतरने से पहले गांव के ऊपर कई चक्कर लगाकर पड़ाव स्थल की सटीक पहचान करते है। स्थान की सही पहचान होने पर अगले एक-दो दिनों में ये उस स्थान उतर जाते है। उन्होंने बताया कि इन दिनों उनके आने की संख्या में वृद्धि होने से सुबह और शाम को ये गांव के ऊपर कई चक्कर लगा रहे है और फिर चुग्गा घर में आकर दाना चुगते है और फिर शाम को गांव से दूर अपने ठिकानों पर चले जाते है। गांव में गूंजता इनका कलरव स्थानीय ग्रामीणों एवं यहां आने वाले पर्यटकों को काफी आकर्षित कर रहा है।


 
उन्होंने बताया कि एकांतप्रिय, शर्मीले मिजाज के ये पक्षी स्थानीय आबादी से काफी दूर रहते है, लेकिन पड़ाव स्थल खीचन पहुंचने के बाद लोगों से घनिष्ठता कायम कर लेता है। ग्रामीण भी कुरजां को अपना मेहमान समझकर उनकी पूरी देखभाल एवं सुरक्षा करते हैं। प्रवासी पक्षियों की स्वच्छन्द अठखेलियों को निहारने के लिए सर्दियों में रोजाना देशी-विदेशी सैलानियों की आवाजाही लगी रहती है।

इन पक्षियों को स्थानीय भाषा में कुरजां कहते हैं। कुरजां अधिकतर बीकानेर और जोधपुर संभाग के गांवों में तालाबों के किनारे पानी पीने के लिए डेरा डालते है। ये पक्षी साइबेरिया से ईरान, अफगानिस्तान होते हुए भारत में प्रतिवर्ष आते हैं और भरतपुर के घाना पक्षी विहार में आना अधिक पसन्द करते हैं। उन्होंने बताया कि ये पक्षी यहां अपने प्रजनन काल के लिए आते है और मार्च में अपने स्थानों पर लौट जाते है। 



 

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