कई बार आपने अपने सफेद रंग की शर्ट में अंडरआर्म्स के तरफ पीले रंग के दाग देखे होंगे। ऐसा कलर्ड स्वेट के कारण होता है। कलर्ड स्वेट मतलब रंग वाला पसीना। सामान्य तौर पर इंसान को पारदर्शी-रंगहीन पसीना निकलता है। लेकिन कई लोगों को पीला या ऑरेंज रंग का पसीना निकलता है जिससे कपड़े में पसीने के दाग पड़ जाते हैं। रंग वाले पसीने के निकलने को विज्ञान में क्रोमहिड्रोसिस कहते हैं।
क्रोमहिड्रोसिस
क्रोमहिड्रोसिस एक अनूठी बीमारी है जिसमें कलर्ड स्वेट निकलता है।
दो ग्लैंड, एक्रीन और एपोक्रीन, की वजह से पसीना निकलता है। एक्रीन ग्लैंड से रंगहीन और गंधहीन पसीना निकलता है जो शरीर का तापमान रेग्युलेट करता है। एपोक्रीन ग्लैंड से मोटा और दुधिया रंग का पसीना निकलता है। ऐसा बैक्टीरिया को शरीर से निकालने के कारण होता है। इस कारण ही पसीने से बदबू आती है।
इसका कारण
क्रोमहिड्रोसिस, एपोक्रीन ग्लैंड से निकलने वाले पसीने के कारण होता है। एपोक्रीन ग्लैंड योनि, कांख, स्तनों और चेहरे के स्कीन के तरफ होती हैं। क्रोमहिड्रोसिस चेहरे, कांख और स्तनों के तरफ निकलने वाले पसीने में होता है। लिपोफस्कीन पिगमेंट कलर्ड स्वेट के लिए जिम्मेदार होता है। ये पिंगमेंट एपोक्रीन ग्लैंड में होता है जिसके कारण पीला, नीला, नारंगी और काले रंग का पसीना निकलता है।
क्रोमहिड्रोसिस की विशेषता
क्रोमहिड्रोसिस को जटिल दवा खाने से होता है।
एपोक्रीन क्रोमहिड्रोसिस की तुलना में एक्रीन क्रोमहिड्रोसिस कम ही होता है।
इसके अलावा स्योडोक्रोमहिड्रोसिस होने के कारण भी होता है जब एक्रीन ग्लैंड से निकलने वाला पसीने में रंग आ जाता है।
एपोक्रीन क्रोमहिड्रोसिस में पसीने में काला रंग सफेद की तुलना में अधिक आता है।
लेकिन जब चेहरे के एपोक्रीन ग्लैंड से क्रोमहिड्रोसिस होता है तो ये सफेद रंग का होता है।
क्रोमहिड्रोसिस की समस्या प्यूबर्टी की उम्र के बाद ही शुरू होती है।
किसी भी तरह का सेक्स संबंध क्रोमहिड्रोसिस के लिए जिम्मेदार नहीं होता।
क्रोमहिड्रोसिस के लक्षण
पसीने में पीला, नीला, काला या सफेद रंग आना।
पसीने में बदबू आना।
कपड़े में पसीने के दाग बनना।
लगभग 10% लोगों को क्रोमहिड्रोसिस हुए बिना पसीने में रंग आता है जो कि सामान्य लक्षण है। ऐसा ग्लैंड के द्वारा शरीर से बैक्टीरिया का बाहर निकालने के कारण होता है।
इसका उपचार
दुर्भाग्य से क्रोमहिड्रोसिस के लिए मेडिकली कोई ट्रीटमेंट नहीं है। ये ग्लैंड की समस्या है जो जवान होने के साथ अधिक सक्रिय होने से होती है। फिर उम्र अधिक बढ़ने पर ग्लैंड की सक्रियता कम होते जाती है जिससे क्रोमहिड्रोसिस की समस्या भी खत्म हो जाती है।