नई दिल्ली। हरियाणा के रीयल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक दशक पुरानी नीति खत्म कर दी है जिसके तहत कालोनी बनाने वालों को लाइसेंस देने में मुख्यमंत्रियों को विवेकाधिकार और अंतिम मंजूरी देने का अधिकार था।
इस नीति को कानून के खिलाफ बताते हुए खट्टर ने 1991 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भजन लाल द्वारा किए गए 25 साल पुराने निर्णय को पलट दिया।
मुख्यमंत्री ने अपने दस्तखत वाले एक आदेश में कहा, ‘‘ हरियाणा विकास एवं शहरी क्षेत्र नियमन कानून द्वारा निदेशक कस्बा एवं देश नियोजन को लाइसेंस जारी करने का अधिकार होने के बावजूद इस तरह की सभी फाइलें, आंतरिक सहमति के नाम पर मेरे सामने पेश की जा रही हैं।’’
पुरानी फाइलें देखने पर पता चलता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक बैठक में निर्णय के बाद सात अगस्त, 1991 को यह परंपरा शुरू हुई।
पीटीआई के पास मौजूद इस आदेश की एक प्रति में कहा गया, ‘‘ यह परंपरा शुरू करने के लिए लाइसेंसों की व्यापक जटितलाएं एकमात्र कारण बताई गई थीं। इससे, बाद के मुख्यमंत्रियों ने यह नीति जारी रखी। जाहिर तौर पर यह परंपरा कानून के खिलाफ है और मैं इसे तत्काल प्रभाव से निरस्त करने का आदेश जारी कर रहा हूं।’’
आमतौर पर मुख्यमंत्री के सभी निर्णय, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के हस्ताक्षर के तहत जारी किए जाते हैं। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब इस राज्य में बिल्डरों को लाइसेंस देने की व्यवस्था जांच के दायरे में रही है जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के स्वामित्व वाली एक फर्म को दी गई अनुमति भी शामिल है।